जैसे जिस व्यक्ति में मकड़ी से दुर्भीति उत्पन्न हो गया है वह उस कमरे में नहीं जा सकता जिसमें मकड़ी है स्पष्टतः मकड़ी एक ऐसा जीव है जो व्यक्ति के लिए कोई खतरा उत्पन्न नही करता है।
इस तरह से दुर्भीति में पाया गया डर दिन-प्रतिदिन के जीवन में पाये जाने वाले डर से भिन्न होता है दिन प्रतिदिन का डर सिर्फ उसी वस्तु या परिस्थिति से होता है जो वास्तव में खतरनाक होता है।
दुर्भीति के लक्षण
- व्यक्ति किसी वस्तु या परिस्थिति से वास्तविक खतरे के अनुपात से अधिक डरता है।
- व्यक्ति का उस वस्तु या परिस्थिति से सामना होने पर अत्यधिक चिंता या भीषिका दौरा भी उत्पन्न हो जाता है।
- व्यक्ति दुर्भीति उत्पन्न करने वाले वस्तु या परिस्थिति से दूर रहना पसंद करता है
- यदि उपरोक्त लक्षण किसी अन्य विशेष रोग से उत्पन्न नहीं हुए हों तभी इसे दुर्भीति कहा जायेगा।
उपर्युक्त प्रमुख लक्षणों के अतिरिक्त अन्य कई तरह के लक्षण भी रोगी में देखें जाते हैं जैसे तनाव, सिरदर्द, पीठ दर्द, पेट में गड़बड़ी तथा दौरे या आतंक की स्थिति में रोगी में व्यक्तित्व लोप, अवास्तविकता, विचित्रता आदि का भी अनुभव होता है।
दुर्भीति में विषाद के भी लक्षण देखे जाते हैं तथा कुछ रोगियों में गंभीर अन्तर्वैयक्तिक कठिनाइयां भी उत्पन्न हो जाती है तथा कुछ रोगियों में निर्णय लेने में कठिनाई होती है।
I. पशु दुर्भीति
इसमें व्यक्ति विशेष पशुओं से डरने लगता है यह दुर्भीति महिलाओं में अधिक पाया जाता है इसकी शुरुआत बाल्यावस्था से ही होता है कुछ पशु दुर्भीति निम्नांकित हैं
दुर्भीति में विषाद के भी लक्षण देखे जाते हैं तथा कुछ रोगियों में गंभीर अन्तर्वैयक्तिक कठिनाइयां भी उत्पन्न हो जाती है तथा कुछ रोगियों में निर्णय लेने में कठिनाई होती है।
दुर्भीति के प्रकार
दुर्भीतियां कई प्रकार की होती है इन सभी दुर्भीति के तीन मुख्य सामान्य प्रकार बतलाये गये हैं।- विशिष्ट दुर्भीति
- एगोराफोबिया
- सामाजिक दुर्भीति
1. विशिष्ट दुर्भीति
विशिष्ट दुर्भीति एक ऐसा असंगत डर होता है जो विशिष्ट वस्तु या परिस्थिति की उपस्थिति या उसके अनुमान मात्र से ही उत्पन्न होता है जैसे बिल्ली से डरना या मकड़ी से डरना। दुर्भीति का लगभग 3% ही विशिष्ट दुर्भीति होता है विशिष्ट दुर्भीति कई तरह के होते हैं जिन्हें चार प्रमुख भागों में बांटा गया हैI. पशु दुर्भीति
इसमें व्यक्ति विशेष पशुओं से डरने लगता है यह दुर्भीति महिलाओं में अधिक पाया जाता है इसकी शुरुआत बाल्यावस्था से ही होता है कुछ पशु दुर्भीति निम्नांकित हैं
- बिल्ली से डर - Ailurophobia
- कुत्ते से डर - Cynophobia
- कीट से डर - Insectophobia
- मकड़ी से डर - Arachnophobia
- चिड़िया से डर - Avisophobia
- घोड़ा से डर - Equinophobia
- सांप से डर - Ophidiophobia
- रोगाणु से डर - Mysophobia
II. अजीवित वस्तुओं से उत्पन्न दुर्भीति
इसमें रोगी कुछ अजीवित वस्तुओं से डरने लगता है यह दुर्भीति पशु दुर्भीति की अपेक्षा अधिक सामान्य है और पुरुष एवं महिला दोनों में समान रूप से पाई जाती है
- आंधी तूफान से डर - Brontophobia
- बंद जगहों से डर - Claustrophobia
- ऊंचाई से डर - Acrophobia
- अंधेरा से डर - Nyctophobia
- आग से डर - Pyrophobia
- अकेलेपन से डर - Monophobia
- हवाई जहाज से यात्रा करने से डर - Aviaphobia
- भीड़ से डर - Ochlophobia
III. बीमारी एवं चोट संबंधी दुर्भीति
इस तरह की दुर्भीति में व्यक्ति चोट जख्म या अन्य तरह की बिमारी से असंगत डरने लगता है उनमें इस बात का डर बना रहता है कि उसे जल्द ही अमुक बिमारी हो जायेगी इस तरह के डर से उसमें कुछ लक्षण जैसे छाती में दर्द तथा पेट में दर्द होने लगता है जिससे व्यक्ति समझता है कि उसे अमुक रोग हो जायेगा।
इस तरह के दुर्भीति की शुरुआत सामान्यतः मध्य आयु में होता है इस तरह की दुर्भीति को (Nosophobia) कहा जाता है।
- मृत्यु से डर - Thanatophobia
- कैंसर से डर - Cancerophobia
- यौन रोगों से डर - Venerophobia
IV. रक्त दुर्भीति
इसमें व्यक्ति को उन परिस्थितियों से असंगत डर विकसित हो जाता है जिसमें उन्हें रक्त देखने को मिलता है चाहे कट फट जाने से रक्त निकल रहा हो या फिर सुई लगाने से या अन्य कारणो से। इस दुर्भीति के कारण रोगी मेडिकल जांच आदि से अपने आपको दूर रखता है।
इस दुर्भीति की शुरुआत बाल्यावस्था में होती है तथा यह दुर्भीति पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक होती है लगभग 4% लोगों में रक्त दुर्भीति सामान्य मात्रा में पायी जाती है।
2. एगोराफोबिया
एगोराफोबिया का शाब्दिक अर्थ है भीड़ भाड़ या बाजार स्थलों से डर।परन्तु वास्तविकता यह है कि एगोराफोबिया में कई तरह के डर सम्मिलित होते हैं जिसका केन्द्र बिन्दु सार्वजनिक या आम स्थानों (Public Places) से ही होता है इसमें व्यक्ति को ऐसा विश्वास होता है कि उसके साथ किसी तरह के दुर्घटना होने पर कोई उसे बचाने नहीं आयेगा।
यह महिलाओं में अधिक होता है तथा इसकी शुरुआत किशोरावस्था तथा आरंभिक वयस्कावस्था से होता है नैदानिक वैज्ञानिकों एवं मनोचिकित्सकों के पास उपचार के लिए आने वाले दुर्भीति रोगियों में से लगभग 60% रोगी एगोराफोबिया के ही होते हैं।
एगोराफोबिया की शुरुआत बार बार आतंक दौरा होने से होता है इसमें कुछ और लक्षण जैसे तनाव, घुमड़ी, हल्का-फुल्का बाध्यता व्यवहार तथा बार बार यह देखना की दरवाजा ठीक से बंद है या नहीं, बिछावन के नीचे झांककर देखना की कहीं कोई घुस तो नहीं गया है आदि।
एगोराफोबिया के रोगियों में लगभग 93% रोगी ऐसे होते हैं जिनमें ऊंचाई एवं बंद जगहों से भी असंगत डर पाया जाता है कुछ व्यक्ति में विभीषिका विकृति में हुए आंतक या भीषिका दौरा के कारण एगोराफोबिया विकसित हो जाता है तथा कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनमें ऐसे विभीषिका दौरा का कोई इतिहास नहीं होता है फिर भी उनमें यह रोग विकसित हो जाता है यही कारण है कि DSM IV (TR) में एगोराफोबिया को वास्तविक दुर्भीति का एक प्रकार न मानकर भीषिका विकृति का एक उप-प्रकार बतलाया गया है।
एगोराफोबिया के रोगियों में लगभग 93% रोगी ऐसे होते हैं जिनमें ऊंचाई एवं बंद जगहों से भी असंगत डर पाया जाता है कुछ व्यक्ति में विभीषिका विकृति में हुए आंतक या भीषिका दौरा के कारण एगोराफोबिया विकसित हो जाता है तथा कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनमें ऐसे विभीषिका दौरा का कोई इतिहास नहीं होता है फिर भी उनमें यह रोग विकसित हो जाता है यही कारण है कि DSM IV (TR) में एगोराफोबिया को वास्तविक दुर्भीति का एक प्रकार न मानकर भीषिका विकृति का एक उप-प्रकार बतलाया गया है।
3. सामाजिक दुर्भीति
इसमें व्यक्ति को अन्य व्यक्तियों के उपस्थिति का सामना करना पड़ता है व्यक्ति को ऐसे परिस्थिति में यह डर बना रहता है कि उसका लोग मूल्यांकन करेंगे।फलतः वह ऐसी परिस्थिति से दूर रहना चाहता है तथा वह चिंतित और काफी घबराया हुआ दिखता है इसे (social anxiety desorder) भी कहा जाता है ऐसे लोग आम लोगों के बीच बोलने से, खाना खाने से तथा सार्वजनिक पेशाब पैखाना घरों के उपयोग से काफी डरते हैं।
सामाजिक दुर्भीति की शुरुआत प्रायः किशोरावस्था में होता है तथा 25 वर्ष के बाद शायद ही किसी व्यक्ति में यह उत्पन्न होता है इसका कारण यह है कि किशोरावस्था में व्यक्ति प्रथम बार सही अर्थ में सामाजिक चेतना तथा अन्य लोगों के साथ अन्तः क्रियाओं से अवगत होता है।
सामाजिक दुर्भीति की शुरुआत प्रायः किशोरावस्था में होता है तथा 25 वर्ष के बाद शायद ही किसी व्यक्ति में यह उत्पन्न होता है इसका कारण यह है कि किशोरावस्था में व्यक्ति प्रथम बार सही अर्थ में सामाजिक चेतना तथा अन्य लोगों के साथ अन्तः क्रियाओं से अवगत होता है।
यह विकृति महिला एवं पुरुष दोनों में ही समान रूप से होता है यह विकृति सामान्यतः GAD , विशिष्ट दुर्भीति, भीषिका विकृति तथा बाध्य व्यक्तित्व विकृति के साथ साथ भी होता है।
दुर्भीति के कारण
दुर्भीति के निम्नांकित चार प्रमुख सिद्धांत या कारक हैं-- जैविक कारक
- मनोविश्लेषणात्मक कारक
- व्यवहारपरक कारक
- संज्ञानात्मक कारक
जैविक कारक
एक ही तरह के तनाव वाली परिस्थिति में होने पर भी कुछ व्यक्तियों में दुर्भीति विकसित हो जाता है जबकि कुछ अन्य व्यक्तियों में नहीं। इसका कारण यह है कि जिनमें दुर्भीति उत्पन्न होता है उनमें कुछ जैविक दुष्कार्य पाया जाता है जो तनावपूर्ण परिस्थिति के बाद उनमें दुर्भीति उत्पन्न कर देता है जैविक कारक से संबंधित दो क्षेत्र महत्वपूर्ण है जिनसे दुर्भीति उत्पन्न होता है।1. स्वायत्त तंत्रिका तंत्र
दुर्भीति उन व्यक्तियों में अधिक उत्पन्न होता है जिनका स्वायत्त तंत्रिका तंत्र कई तरह के पर्यावरणीय उद्दीपक से बहुत जल्द ही उत्तेजित हो जाता है इसे स्वायत्त अस्थिरता कहा जाता है जो बहुत हद तक वंशानुगत रूप से निर्धारित होता है अतः दुर्भीति उत्पन्न होने में आनुवांशिकता का एक निश्चित भूमिका होता है।
2. आनुवांशिक कारक
दुर्भीति होने की सम्भावना उन व्यक्तियों में अधिक होती है जिसके माता-पिता या सगे संबंधियों में इस तरह का रोग पहले उत्पन्न हो चुका होता है।
मनोविश्लेषणात्मक कारक
फ्रायड पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने दुर्भीति के कारणों की व्याख्या मनोविश्लेषणात्मक कारक के रुप में की है फ्रायड के अनुसार दमित उपाह इच्छाओं से उत्पन्न चिंता के प्रति रोगी द्वारा अपनाया गया दुर्भीति एक सुरक्षा होता है यह चिंता या डर उत्पन्न करने वाले उपाह की इच्छाओं से विस्थापित होकर किसी वैसे वस्तु या परिस्थिति से संबंधित हो जाता है जो इन इच्छाओं से किसी न किसी ढंग से जुड़ा होता है वह परिस्थिति या वस्तु जैसे बंद स्थान, ऊंचाई, कीड़े मकोड़े आदि हो सकते हैं जो व्यक्ति के लिए दुर्भीति उत्पन्न करने वाले उद्दीपक हो जाते हैं।तथा फ्रायड ने यह भी बतलाया कि जब अचेतन लैंगिक इच्छाएं चेतन में प्रवेश करने की कोशिश करती है तो अहं (ego) चिंता को किसी दूसरे वस्तु पर स्थानांतरित कर देता है जो फिर बाद में वास्तव में खतरनाक जैसा प्रतीत होता है।
दुर्भीति का दूसरा मनोविश्लेषणात्मक व्याख्या (Arieti, 1979) द्वारा प्रदान किया गया है इनके अनुसार बाल्यावस्था में बच्चे निर्दोषता की अवधि से गुजरते हैं जिसके दौरान उन्हें यह विश्वास होता है कि वयस्क लोग उन्हें किसी भी तरह के खतरे से बचा लेंगें। परंतु बड़े होने पर जब उनका यह विश्वास टूटता है तो वे वयस्कों विशेषकर माता पिता को अधिक विश्वसनीय नही मानने लगते हैं परन्तु माता-पिता को विश्वसनीय नहीं मानना सामाजिक दृष्टिकोण से अनुचित होता है इसलिए वे फिर से इन वयस्को में विश्वास तथा भरोसा करना प्रारंभ कर देते हैं और इस प्रक्रिया में वे अचेतन रूप से अन्य लोगों के डर को कुछ वस्तु या परिस्थिति से प्रतिस्थापित कर देते है इससे आखिरकार व्यक्ति में दुर्भीति उत्पन्न हो जाती है।
1. परिहार अनुबंधन
इसमें दुर्भीति उत्पन्न होने के लिए यह आवश्यक है कि उत्पन्न डर सामान्यीकृत हो अर्थात व्यक्ति सिर्फ अनुबंधित उद्दीपक से नहीं डरे बल्कि अन्य समान उद्दीपक से भी डरे। जैसे वह सिर्फ विशेष ऊंचे मकान पर जाने से नही डरे बल्कि सभी ऊंची स्थानों पर जाने से डरे।
परिहार अनुबंधन के अनुसार किसी विशिष्ट वस्तु से संबंधित दुर्भीति प्रायः उस वस्तु से उत्पन्न दर्द भरे अनुभूतियों से ही उत्पन्न होता है।
दुर्भीति का दूसरा मनोविश्लेषणात्मक व्याख्या (Arieti, 1979) द्वारा प्रदान किया गया है इनके अनुसार बाल्यावस्था में बच्चे निर्दोषता की अवधि से गुजरते हैं जिसके दौरान उन्हें यह विश्वास होता है कि वयस्क लोग उन्हें किसी भी तरह के खतरे से बचा लेंगें। परंतु बड़े होने पर जब उनका यह विश्वास टूटता है तो वे वयस्कों विशेषकर माता पिता को अधिक विश्वसनीय नही मानने लगते हैं परन्तु माता-पिता को विश्वसनीय नहीं मानना सामाजिक दृष्टिकोण से अनुचित होता है इसलिए वे फिर से इन वयस्को में विश्वास तथा भरोसा करना प्रारंभ कर देते हैं और इस प्रक्रिया में वे अचेतन रूप से अन्य लोगों के डर को कुछ वस्तु या परिस्थिति से प्रतिस्थापित कर देते है इससे आखिरकार व्यक्ति में दुर्भीति उत्पन्न हो जाती है।
व्यवहारात्मक कारक
इस सिध्दांत या कारक के अनुसार व्यक्ति में दुर्भीति उत्पन्न होने का मुख्य कारण दोषपूर्ण सीखना होता है इस दोषपूर्ण सीखना की व्याख्या तीन तरह के कारकों से की गयी है—1. परिहार अनुबंधन
इसमें दुर्भीति उत्पन्न होने के लिए यह आवश्यक है कि उत्पन्न डर सामान्यीकृत हो अर्थात व्यक्ति सिर्फ अनुबंधित उद्दीपक से नहीं डरे बल्कि अन्य समान उद्दीपक से भी डरे। जैसे वह सिर्फ विशेष ऊंचे मकान पर जाने से नही डरे बल्कि सभी ऊंची स्थानों पर जाने से डरे।
परिहार अनुबंधन के अनुसार किसी विशिष्ट वस्तु से संबंधित दुर्भीति प्रायः उस वस्तु से उत्पन्न दर्द भरे अनुभूतियों से ही उत्पन्न होता है।
जैसे स्कूटर से दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर कुछ लोगों में सिर्फ स्कूटर ही नहीं बल्कि दो पहिया, तीन पहिया तथा चार पहिया वाहनों को चलाने के प्रति उनमें असंगत डर विकसित हो जाता है।
(Ost, 1987) ने अपने अध्ययन में यह पाया कि कुछ ऐसे भी व्यक्ति उनके उपचारगृह में आए जिनमें सर्प, जीवाणु, हवाई जहाज तथा ऊंचाई से दुर्भीति उत्पन्न तो अवश्य हुआ था परन्तु उनके जीवन में इन वस्तुओं से कभी भी कोई अप्रिय अनुभव नहीं हुआ था। इसी तरह से कुछ अध्ययनों में यह देखा गया कि मोटर या कार दुर्घटना का अनुभूति नही होने पर भी उनमें इन वाहनों के प्रति दुर्भीति उत्पन्न हो गया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि परिहार अनुबंधन माॅडल दुर्भीति की पूर्ण व्याख्या करने में अकेले सक्षम नहीं है।
2. माॅडलिंग
माॅडलिंग के अनुसार दुर्भीति व्यक्ति में दूसरों के व्यवहार का प्रेक्षण करके या उसके बारे में सुनकर भी विकसित होता है जैसे एक प्रयोग में किशोर बंदरों को कुछ वयस्क बंदरों के साथ रखा गया जो सांप से काफी डरते थे विभिन्न प्रेक्षणात्मक सीखना के सत्रो के दौरान किशोर बंदरों ने उन वयस्क बंदरो को सांप से डरने के व्यवहारों का तथा अन्य उद्दीपक से नहीं डरने के व्यवहारों का प्रेक्षण किया। छह ऐसे सत्रों के बाद पाया गया कि किशोर बंदरों में भी सांप के प्रति असंगत डर विकसित हो गया था।
3. धनात्मक पुनर्बलन
दुर्भीति का विकास व्यक्ति में धनात्मक पुनर्बलन के आधार पर भी होता है जैसे कोई बच्चा स्कूल जाने के डर से अपने माता-पिता के सामने कुछ ऐसा बहाना बनाता है कि उसे स्कूल नहीं जाना पड़े। यदि माता पिता उसके इस बहाने को सुनकर उसे स्वीकार कर लेते हैं और जिसके परिणामस्वरूप बच्चे को स्कूल नहीं जाना पड़ता है तो यहां माता पिता द्वारा बच्चों को स्कूल नहीं जाने के लिए सीधा धनात्मक पुनर्बलन मिल रहा है इसका परिणाम यह होगा कि बच्चा भविष्य में डरकर स्कूल नहीं जाने की अनुक्रिया को सीख लेगा।
(Ost, 1987) ने अपने अध्ययन में यह पाया कि कुछ ऐसे भी व्यक्ति उनके उपचारगृह में आए जिनमें सर्प, जीवाणु, हवाई जहाज तथा ऊंचाई से दुर्भीति उत्पन्न तो अवश्य हुआ था परन्तु उनके जीवन में इन वस्तुओं से कभी भी कोई अप्रिय अनुभव नहीं हुआ था। इसी तरह से कुछ अध्ययनों में यह देखा गया कि मोटर या कार दुर्घटना का अनुभूति नही होने पर भी उनमें इन वाहनों के प्रति दुर्भीति उत्पन्न हो गया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि परिहार अनुबंधन माॅडल दुर्भीति की पूर्ण व्याख्या करने में अकेले सक्षम नहीं है।
2. माॅडलिंग
माॅडलिंग के अनुसार दुर्भीति व्यक्ति में दूसरों के व्यवहार का प्रेक्षण करके या उसके बारे में सुनकर भी विकसित होता है जैसे एक प्रयोग में किशोर बंदरों को कुछ वयस्क बंदरों के साथ रखा गया जो सांप से काफी डरते थे विभिन्न प्रेक्षणात्मक सीखना के सत्रो के दौरान किशोर बंदरों ने उन वयस्क बंदरो को सांप से डरने के व्यवहारों का तथा अन्य उद्दीपक से नहीं डरने के व्यवहारों का प्रेक्षण किया। छह ऐसे सत्रों के बाद पाया गया कि किशोर बंदरों में भी सांप के प्रति असंगत डर विकसित हो गया था।
3. धनात्मक पुनर्बलन
दुर्भीति का विकास व्यक्ति में धनात्मक पुनर्बलन के आधार पर भी होता है जैसे कोई बच्चा स्कूल जाने के डर से अपने माता-पिता के सामने कुछ ऐसा बहाना बनाता है कि उसे स्कूल नहीं जाना पड़े। यदि माता पिता उसके इस बहाने को सुनकर उसे स्वीकार कर लेते हैं और जिसके परिणामस्वरूप बच्चे को स्कूल नहीं जाना पड़ता है तो यहां माता पिता द्वारा बच्चों को स्कूल नहीं जाने के लिए सीधा धनात्मक पुनर्बलन मिल रहा है इसका परिणाम यह होगा कि बच्चा भविष्य में डरकर स्कूल नहीं जाने की अनुक्रिया को सीख लेगा।
संज्ञानात्मक कारक
दुर्भीति विकृति से ग्रस्त व्यक्ति जानबूझकर परिस्थिति को या उससे मिलने वाले सूचनाओं को इस ढंग से संसाधित कर लेता है कि उससे उनका दुर्भीति और भी मजबूत हो जाता है इस तरह से दुर्भीति के उत्पन्न होने तथा उसे संपोषित होने में एक तरह का संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह होता है।दुर्भीति के उपचार
दुर्भीति के उपचार की कई विधियां हैं जिन्हें मोटे तौर पर निम्नांकित चार प्रमुख भागों में बांटा गया है।
- जैविक उपचार
- मनोविश्लेषणात्मक उपचार
- व्यवहारात्मक उपचार
- संज्ञानात्मक उपचार
जैविक उपचार
दुर्भीति के रोगियों की चिंता कम करने के लिए चिंता विरोधी औषध जैसे (Barbiturate) का प्रयोग किया जाता है परन्तु इसका पार्श्विक प्रभाव अधिक होने के कारण इसका उपयोग कम होने लगा है इसकी जगह तुलनात्मक रूप से अन्य दो औषध जैसे (Propanediols) तथा (Benzodiazepines) का उपयोग अधिक किया जाता है इन औषधों की सबसे बड़ी कमी यह है कि औषध बन्द करते ही दुर्भीति के लक्षण पुनः लौट आते हैं।
मनोविश्लेषणात्मक उपचार
इसमें चिकित्सक रोगी के ऐसे दमित मानसिक संघर्ष की पहचान करके उपचार करने की कोशिश करता है जो रोगी में असंगत डर उत्पन्न करता है तथा डर के वस्तुओं या परिस्थितियों से व्यक्ति को दूर ले जाता है। इस तरह के संघर्ष की पहचान करने में चिकित्सक स्वतंत्र साहचर्य विधि, स्वप्न विश्लेषण आदि का सहारा लेता है।
परम्परागत मनोविश्लेषक मूलतः लैंगिक मानसिक संघर्ष का पता लगाकर रोगी का उपचार करते हैं।
परंतु (Arieti) के अन्तरवैयक्तिक सिद्धान्त से सम्बंधित मनोविश्लेषक ऐसे रोगी को अपने सामान्यीकृत डर को समझने में मदद कर उसका उपचार करते हैं।
व्यवहारपरक उपचार
दुभीति के उपचार में कई तरह के व्यवहारपरक विधियों जैसे क्रमबद्ध असंवेदीकरण, मॉडलिंग तथा फ्लडिंग आदि प्रमुख हैं।
क्रमबद्ध असंवेदीकरण
क्रमबद्ध असंवेदीकरण की प्रविधि द्वारा दुर्भीति का उपचार काफी किया गया है। इसका विकास (Joseph Wolpe) द्वारा 1950 के दशक में किया गया था।
इस विधि में उपचार तीन स्तरीय अवस्था में होता है-
- पहली अवस्था में चिकित्सक रोगी को मांशपेशियों के शिथिलीकरण का प्रशिक्षण देता है।
- दूसरी अवस्था में चिकित्सक की मदद से रोगी उन सभी वस्तुओं या परिस्थितियों की एक पदानुक्रमिक सूची तैयार करता है। जिनसे वह डरता है
- तीसरी अवस्था में प्रतिअनुबंधन के सहारे रोगी के दुर्भीति को धीरे-धीरे कम किया जाता है।
इस तीसरी अवस्था में रोगी गहरी शिथिलीकरण की अवस्था में रहते हुए सूची से हर उत्पन्न करने वाले उद्दीपकों के बारे में एक-एक करके सोचते जाता है।
वह पहले सूची के उस उद्दीपक के बारे में सोचता है जिससे सबसे कम डर उत्पन्न होता है फिर उसके बाद अधिक डर उत्पन्न करने वाले उद्दीपक के बारे में एक के बाद एक करके सोचता है। इससे उसका डर स्वभावतः कम हो जाता है क्योंकि डर तथा शिथिलीकरण आपस में असंगत अनुक्रिया है जो एक साथ नहीं हो सकता है।
मॉडलिंग
मॉडलिंग की प्रविधि में दुर्भीति के रोगी किसी ऐसे मॉडल या व्यक्ति के व्यवहार को देखता है जो उसके रोग से सम्बन्धित व्यवहार को बिना किसी डर के करता है।
जैसे, सर्प दुर्भीति के रोगी को एक ऐसा मॉडल दिखलाकर उसका उपचार किया जाता है जिसमें मॉडल या व्यक्ति सर्प को लेकर अपने शरीर पर छोड़ता है तथा वह फिर सर्प को हाथ से पकड़कर उसे उलट-पुलट करते हुए अपने कधे एवं गले में लिपटाता है।
उसे देखकर रोगी यह सोचता है कि सचमुच में सर्प से उसका डर व्यर्थ है। फिर उसके बाद चिकित्सक उस रोगी को धीरे-धीरे साँप के पास आने, उसे छूने एवं पकड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है और इसी प्रक्रिया को बार-बार करके उसकी दुर्भीति को कम या समाप्त किया जाता है।
फ्लडिंग
फ्लडिंग में दुर्भीति के रोगी को उस वस्तु या परिस्थिति में लंबे समय तक रखा जाता है जिससे वह डरता है।
जैसे बंद स्थान से दुर्भीति (claustrophobia) के रोगी को बंद कमरे में कुछ घंटों तक रखा जाता है तथा ऊँचाई से डरने (Acrophobia) वाले व्यक्ति को ऊँचे मकान पर कुछ घंटों के लिए ले जाया जाता है।
ऐसा करने से रोगी में यह सूझ उत्पन्न होता है कि उसका डर व्यर्थ है क्योंकि किसी भी तरह का अनर्थ तो नहीं होता है। ऐसी सूझ से उसकी दुर्भीति स्वतः कम होने लगती है।
संज्ञानात्मक उपचार
दुर्भीति के उपचार में संज्ञानात्मक प्रविधियाँ अधिक सफलीकृत नहीं हो पायी है।
(Ellis, 1962) का सुझाव है कि रोगी के असंगत विश्वासों द्वारा दुर्भीति संपोषित होता है। अतः जब भी रोगी उस वस्तु या परिस्थिति जिससे वह डरता है, का सामना करता है। तो उसे अपने असंगत विश्वास के खोखलापन को समझाने की कोशिश करनी चाहिए। इससे रोगी में असंगत विश्वास कमजोर होकर उसके जगह पर संगत विश्वास कायम हो जाएगा और फिर धीरे-धीरे उसकी दुर्भीति कम हो जाएगी या समाप्त हो जाएगी।