Abnormal psychology (definition & nature) | criteria of abnormality | classification of Abnormality

Abnormal psychology 

असामान्य मनोविज्ञान मनोविज्ञान की एक शाखा है जिसमें असामान्य व्यक्तियों के व्यवहारों एवं मानसिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है इसे मनोविकृति विज्ञान भी कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है मन का रोगविज्ञान।

इससे स्पष्ट है कि असामान्य मनोविज्ञान का विषय वस्तु असामान्य व्यवहार का अध्ययन करना है।


(Strange 1977) के अनुसार "असामान्य मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वैसी शाखा है जिसका संबंध विकृत व्यवहारों के निदान, वर्गीकरण, उपचार एवं उनकी व्याख्या करने के लिए उपर्युक्त सिध्दांतों से होता है।"

(Carson & Butcher 1922) के अनुसार "असामान्य मनोविज्ञान या मनोरोग विज्ञान को लम्बे अरसे से मनोविज्ञान का एक ऐसा क्षेत्र समझा जाता है जो असामान्य व्यवहार को समझने, उपचार तथा उनके रोकथाम से संबंधित है।"

(Altmanns & Emery 1995) के अनुसार "मानसिक रोगों के अध्ययन में मनोवैज्ञानिक विज्ञान का उपयोग ही असामान्य मनोविज्ञान कहलाता है।"


असामान्य मनोविज्ञान की प्रकृति 

  1. असामान्य मनोविज्ञान मनोविज्ञान की एक विशिष्ट शाखा है।
  2. असामान्य मनोविज्ञान को मनोविकृति विज्ञान भी कहा जाता है।
  3. असामान्य मनोविज्ञान में असामान्य व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है।
  4. असामान्य मनोविज्ञान में असामान्य व्यवहारों की सैध्दांतिक व्याख्या की जाती है।


असामान्य व्यवहार की कसौटियां  (criteria of abnormality or Abnormal behaviour)

असामान्य व्यवहार को मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के अनुसार विभिन्न कसौटियों के आधार पर परिभाषित करने की कोशिश की गयी है। जो निम्नांकित हैं -
  • सांख्यिकीय अबारंबारता की कसौटी
  • मानक अतिक्रमण की कसौटी
  • व्यक्तिगत व्यथा की कसौटी
  • अयोग्यता या दुष्क्रिया की कसौटी
  • अप्रत्याशा की कसौटी
इन पांचों कसौटियों के आधार पर असामान्य व्यवहार को अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया गया है।

सांख्यिकीय अबारंबारता की कसौटी

इस कसौटी के अनुसार वे सभी व्यवहार असामान्य होते हैं जो सांख्यिकीय औसत से विचलित होते हैं जो व्यवहार उस औसत में आते हैं वे सामान्य होते हैं और जो उसमें नहीं आते उन्हें असामान्य कहा जाता है।

जैसे - जिन व्यक्तियों की बुध्दि लब्धि 70 से कम होता है उसे मानसिक रूप से मंद कहा जाता है। परन्तु जिनका 70 होता है उन्हें सामान्य कहा जाता है।


इस कसौटी के दोष
इस कसौटी के अनुसार न केवल औसत से कम बुद्धि लब्धि वाले बल्कि औसत से ऊपर जैसे 140 या 160 या इससे अधिक बुध्दि लब्धि वाले व्यक्ति भी असामान्य कहलायेंगे। जो कि गलत है।

मानक अतिक्रमण की कसौटी

प्रत्येक व्यक्ति एक समाज में रहता है और प्रत्येक समाज के अपने मानक होते हैं जो यह बतलाते हैं कि व्यक्ति को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। जब व्यक्ति का व्यवहार मानक के अनुकूल होता है तो उसे सामान्य कहा जायेगा और जब व्यक्ति का व्यवहार समाज के मानकों का अतिक्रमण करता है तो उसे असामान्य कहा जायेगा।

जैसे कुछ समाज के मानकों में अपने ही चचेरे फुफेरे भाई बहनों में शादी करना आम बात होती है। यदि ऐसी शादी होती है तो उसे सामान्य कहा जायेगा।
परन्तु कुछ समाज में ऐसी शादियां समाज के मानकों के विपरित होती हैं। यदि समाज के मानकों का अतिक्रमण करके ऐसी शादी होती है तो उसे असामान्य कहा जायेगा।

इस कसौटी के दोष
एक ही व्यवहार एक समाज या संस्कृति में सामान्य हो सकता है परंतु वही व्यवहार दूसरे समाज या संस्कृति में असामान्य हो सकता है। ऐसी परिस्थिति में इस कसौटी के अनुसार असामान्य व्यवहार का कोई सार्विक परिभाषा देना संभव नहीं है।

व्यक्तिगत व्यथा की कसौटी

अगर व्यक्ति का व्यवहार ऐसा होता है जिससे उसमें अधिक तकलीफ या यातना उत्पन्न होता है तो उसे असामान्य व्यवहार कहा जायेगा। जैसे - दुश्चिंता विकृति (anxiety desorder) तथा विषाद (depression) से ग्रस्त व्यक्तियों को अधिक यातना सहना पड़ता है । 
असामान्य व्यवहार को परिभाषित करने की यह कसौटी या उपागम पहले के दोनों कसौटियों से अधिक उदारवादी है क्योंकि इसमें लोग अपनी समान्यता की परख स्वयं ही करते हैं न कि कोई समाज या विशेषज्ञ।

इस कसौटी के दोष
सभी तरह के व्यक्तिगत यातना या व्यथा उत्पन्न करने वाले व्यवहार को असामान्य नहीं कहा जा सकता है। जैसे - तीव्र भूख, तीव्र प्यास, किसी तरह के साधारण दर्द या चोट निश्चित रूप से व्यक्ति को यातना देते हैं लेकिन इसे असामान्य व्यवहार नहीं कहा जायेगा।

अयोग्यता या दुष्क्रिया की कसौटी 

अगर कोई व्यक्ति अपनी लक्ष्य की प्राप्ति करने में अयोग्यता के कारण असमर्थ रहता है तो उसके इस व्यवहार को असामान्य कहा जायेगा।
(Wakefield) ने इस क्षेत्र में किये गये शोधों का विश्लेषण करने के बाद यह बतलाया कि असामान्य व्यवहार का एक महत्वपूर्ण तत्व दुष्क्रिया भी है।
दुष्क्रिया से तात्पर्य व्यक्ति के किसी प्रक्रम के स्वाभाविक कार्यवाही का इस तरह से असफल हो जाने से होता है कि उससे व्यक्ति को हानि हो जाती है। जैसे यदि कोई व्यक्ति तैरना अच्छी तरह से आता है और वह यह भी जानता है कि पानी में उसे किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है परन्तु फिर भी वह पानी में प्रवेश करने में डरता है।

इस कसौटी के दोष 
अयोग्यता कुछ व्यवहारों के लिए सही है न कि सभी तरह के व्यवहार के लिए।
कुछ विशेषताएं ऐसी होती हैं जिन्हें अयोग्यता कहा जा सकता है लेकिन फिर भी उनका अध्ययन असामान्य मनोविज्ञान में नहीं होता है क्योंकि उन्हें असामान्य व्यवहार नहीं कहा जा सकता। जैसे पुलिस सेवा में पदाधिकारी बनने के लिए निर्धारित शारीरिक ऊंचाई का किसी व्यक्ति में न होना। स्वभावतः यह उसकी एक अयोग्यता है। परन्तु इसे असामान्य व्यवहार नहीं कहा जा सकता है।

अप्रत्याशा की कसौटी

असामान्य व्यवहार पर्यावरणीय तनाव उत्पन्न करने वाले उद्दीपक के प्रति एक तरह का अप्रत्याशित अनुक्रिया ही होता है। जैसे जब व्यक्ति अपनी वित्तीय मजबूती के बावजूद भी अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में लगातार चिंतिंत रहता है और जब यह चिंता सामान्य अनुपात से अधिक हो जाता है तो इससे व्यक्ति में चिंता रोग उत्पन्न हो जाता है।

इस कसौटी के दोष 
इस कसौटी को भी सर्वमान्य कसौटी नहीं कहा जा सकता क्योंकि सभी अप्रत्याशित व्यवहार को असामान्य व्यवहार नहीं कहा जा सकता है। जैसे रास्ते में जाते समय अचानक सांप देखकर डरकर चिल्लाना एक अप्रत्याशित व्यवहार है परन्तु इसे असामान्य व्यवहार नहीं कहा जायेगा।


Four 'D' of Abnormal Behaviour 

असामान्य व्यवहार को परिभाषित करने वाले इन कसौटियों पर सर्वमान्य सहमति नहीं है क्योंकि ऐसी कोई भी कसौटी नहीं है जो असामान्य व्यवहार की एक ऐसी व्याख्या करे जो हर परिस्थिति में मान्य हो।
इसलिए असामान्य व्यवहार को four 'D' के रूप में समझने पर आम सहमति है -
1. विचलन (Deviance)
इसके अन्तर्गत उन व्यवहारों को असामान्य व्यवहार की श्रेणी में रखा जाता है जो सामाजिक मानकों से भिन्न एवं असाधारण होते हैं।

2. तकलीफ (Distress)
असामान्य व्यवहार वैसे व्यवहार को कहा जाता है जो स्वयं व्यक्ति के लिए दुखदायी या तकलीफदेह होता है।

3. दुष्क्रिया (Dysfunction)
असामान्य व्यवहार वैसे व्यवहार को कहा जाता है जो व्यक्ति के दिन प्रतिदिन के व्यवहार या क्रिया को करने में बाधक सिध्द होता है यह व्यक्ति को इतना अशांत कर देता है कि वह साधारण सामाजिक परिस्थिति या कार्य में भी अपने आपको ठीक ढंग से समायोजित नहीं कर पाता है।

4. खतरा (Danger)
असामान्य व्यवहार सामान्यतः स्वयं व्यक्ति या रोगी के लिए खतरनाक तो होता ही है साथ ही साथ वह अन्य व्यक्तियों के लिए भी खतरनाक साबित होता है। क्योंकि ऐसे व्यक्तियों में असावधानी, खराब निर्णय तथा विद्वेष या कुव्याख्या आदि अधिक होता है अतः उनका व्यवहार अपने एवं दूसरों के कल्पना के ख्याल से कहीं अधिक चिंताजनक होता है।


Classification of Abnormality 

असामान्य व्यवहारों का वर्गीकरण मनोचिकित्सक एवं नैदानिक मनोवैज्ञानिकों का एक मुख्य विषय रहा है। यहां वर्गीकरण से तात्पर्य असामान्य व्यवहारों को ऐसे श्रेणियों में विभक्त करने से होता है जिनसे उनके स्वरूप को ठीक ढंग तथा स्पष्ट रूप से समझा जा सके। श्रेणीकरण के इस प्रविधि को निदान (diagnostic) कहा जाता है।

(Seligman & Rosenhan 1998) के अनुसार "व्यवहारपरक एवं मनोवैज्ञानिक पैटर्न के अनुसार मनोवैज्ञानिक विकृतियों का श्रेणीकरण ही निदान (diagnostic) कहलाता है।"

असामान्य व्यवहारों को वर्गीकृत करने के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दो प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के वर्गीकरण तंत्र अस्तित्व में आये। 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने (International statical classification of disease, injuries and causes of death or ICD) के छठा संस्करण का प्रकाशन किया। जिसमें मानसिक रोगों का एक औपचारिक वर्गीकरण का प्रकाशन किया गया जिसकी मान्यता ब्रिटेन समेत अन्य कई देशों में काफी रही। इस वर्गीकरण में अमेरिकन मनोचिकित्सकों ने अहम भूमिका निभाई थी। ICD के प्रकाशन के तुरंत बाद (American Psychiatric Association) अमेरिकन मनोचिकित्सक संघ ने एक तुलनात्मक रूप से अधिक प्रभावकारी वर्गीकरण तंत्र का प्रकाशन किया। जिसे (Diagnostic and statical Manual of Mental Desorder or DSM) कहा गया । इसे DSM-I कहा गया जिसका प्रकाशन वर्ष 1952 में किया गया। तत्पश्चात ICD और DSM के संशोधित और नये संस्करण प्रकाशित किये गये। 
जिसके संस्करण और प्रकाशित वर्ष निम्नांकित हैं -

अमेरिकन मनोचिकित्सक संघ द्वारा प्रकाशित वर्गीकरण तंत्र 
DSM -I 1952
DSM-II 1968
DSM-III 1980
DSM-III R 1987
DSM-IV 1994
DSM-IV TR 2000
DSM-V 2013

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित वर्गीकरण तंत्र 
ICD-1  (1900)
ICD-2 (1910)
ICD-3 (1921)
ICD-4 (1930)
ICD-5 (1939)
ICD-6 (1949)
ICD-7 (1958)
 ICD-8 (1968)
ICD- 9 (1979)
ICD-9-CM (1980)
ICD-10 (1993)
ICD-10-CM (1999)
ICD-11  (2022)

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