- पूर्व वैज्ञानिक काल : पुरातन समय से लेकर 1800 तक
- असामान्य मनोविज्ञान का आधुनिक उद्धव :1801 से 1950 तक
- आज का असामान्य मनोविज्ञान : 1951 से लेकर आज तक
पूर्व वैज्ञानिक काल
इस काल में मानसिक रोगियों एवं उनके उपचार के बारे में चिकित्सकों एवं आम लोगों में एक अजीब उतार चढ़ाव आया जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नांकित चार भागों में बांटकर किया गया है1. पाषाण युग का जीववादी चिन्तन
सचमुच में असामान्य व्यवहार एवं उसके उपचार की शुरुआत पाषाण युग के एक महत्वपूर्ण संप्रत्यय (concept) के विचारों से प्रेरित मानी जाती है जिसे जीववाद (Animism) कहा जाता है। जीववाद के विचारधारा के अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु जैसे हवा, पानी, पेड़ पौधे, पत्थर आदि के भीतर कोई अलौकिक जीव होता है और इन वस्तुओं में गति इसलिए होता है क्योंकि उसके भीतर अलौकिक प्राणी या देवता का वास होता है। इसी कारण पत्थर लुढ़कते है, हवा बहती है, पेड़ पौधे बढ़ते हैं, नदी तथा झरनों में पानी बहता है।
जीववाद के अनुसार व्यक्ति द्वारा असामान्य व्यवहार दिखलाने का मूल कारण उसके भीतर किसी आत्मा, अपदूत या पिशाच या भूत-प्रेत प्रवेश कर जाता है। अर्थात जब व्यक्ति के शरीर पर किसी बुरी या दुष्ट आत्मा का अधिकार हो जाता है तो व्यक्ति मानसिक रोग से ग्रसित हो जाता है।
इसी प्रकार प्राचीन काल में ग्रीक, चीन तथा मिस्र आदि देशों के हेब्रुज निवासियों का भी कुछ ऐसा ही मानना था कि जब व्यक्ति के प्रति ईश्वर की कृपादृष्टि समाप्त हो जाती है तो ईश्वर अभिशाप या दण्ड के रूप में व्यक्ति में असामान्य व्यवहार विकसित कर देता है।
उस समय मानसिक रोग के उपचार की दो विधियां अधिक लोकप्रिय थी अपदूत निसारन (exorcism) तथा ट्रिफीनेशन (trephination)
अपदूत निसारन एक ऐसी विधि थी जिसमें विभिन्न तरह के प्रविधियों के सहारे शरीर के भीतर मौजूद अपदूत या बुरी आत्मा को बाहर निकाला जाता था इन प्रविधियों में प्रार्थना, जादू टोना, शोर गुल, झाड़ फूंक तथा अन्य कष्टदायक विधियां जैसे कीड़े लगाना, लम्बे समय तक भूखा रखना, भेड़ों की लेडीं तथा शराब मिलाकर तैयार किया गया शोधक खिलाना आदि सम्मिलित थे। उनका ऐसा मानना था कि इन प्रविधियों से ग्रसित व्यक्ति का शरीर इतना कष्टदायक एवं दुखद हो जायेगा कि व्यक्ति के शरीर में प्रवेश किया अपदूत या बुरी आत्मा अपने आप शरीर छोड़कर भाग जायेगी और व्यक्ति स्वस्थ हो जायेगा।
एक दूसरी प्रविधि थी जिनके सहारे मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों के भीतर मौजूद बुरी आत्मा को बाहर निकाला जाता था इस विधि में नुकीले पत्थरों से मार मारकर ऐसे व्यक्तियों के खोपड़ी में एक छेद कर दिया जाता था ताकि बुरी आत्मा बाहर निकल जाए और व्यक्ति स्वस्थ हो जाये।
2. प्रारंभिक दार्शनिक एवं मेडिकल विचारधाराएं
प्राचीन ग्रीक के स्वर्ण युग में अर्थात आज से 2500 वर्ष पहले मानसिक रोगों तथा असामान्य व्यवहार के संबंध में एक विकेकी तथा वैज्ञानिक विचारधारा का जन्म हुआ। जिसका श्रेय ग्रीक दार्शनिक हिपोक्रेट्स को जाता है जिन्हें आधुनिक चिकित्साशास्त्र (modern medicine) का जनक भी माना जाता है।
मानसिक रोगों के संबंध में हिपोक्रेट्स का क्रांतिकारी विचार यह था कि मानसिक रोग या शारीरिक रोग की उत्पत्ति कुछ स्वाभाविक कारणों से होता है न कि शरीर के भीतर बुरी आत्मा के प्रवेश कर जाने से या देवी-देवताओं के प्रकोप से जैसा पहले माना जाता था। हिपोक्रेट्स के इस विचार को प्रकृतिवाद (Naturalism) कहा गया। जो जीववाद के विचारधारा के प्रतिकूल था।
इस विचारधारा का वर्णन चार भागों में बांटकर किया गया है -
i. हिपोक्रेट्स का योगदान
हिपोक्रेट्स का मत था कि शारीरिक रोगों के समान मानसिक रोग भी कुछ स्वाभाविक कारणों से उत्पन्न होते हैं तथा शारीरिक रोगियों के समान मानसिक रोगियों का भी मानवीय देखभाल के आवश्यकता पर उन्होंने जोर दिया। इनका यह भी विचार था कि सभी तरह के बौद्धिक क्रियाओं का केन्द्रीय अंग मस्तिष्क होता है इसलिए सभी मानसिक बिमारियों का मूल कारण मस्तिष्कीय विकृति है।इन्होंने सभी मानसिक बिमारियों को तीन श्रेणियों (अर्थात उन्माद, विषाद रोग, उन्मत्तता या मस्तिष्कीय ज्वर) में बांटकर इनका नैदानिक चित्रण भी किया।
इन्होंने यह भी बतलाया की मस्तिष्क में चोट या आघात से तथा पर्यावरणीय कारकों से भी मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं।
ii. प्लेटो एवं अरस्तू का योगदान
अपराधजन्य क्रिया करने वाले मानसिक रोगियों का अध्ययन अन्य ग्रीक दार्शनिकों जैसे प्लेटो एवं उनके शिष्य अरस्तू द्वारा किया गया।प्लेटो का विचार था कि चूंकि ऐसे मानसिक रोगी अपराधजन्य क्रियाओं के लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेवार नहीं होते हैं इसलिए उन्हें सामान्य अपराधियों के समान दण्डित नहीं किया जाना चाहिए। प्लेटो का यह भी मत था कि व्यक्ति का व्यवहार एवं चिंतन सामाजिक सांस्कृतिक कारकों द्वारा काफी हद तक निर्धारित होता है।
इन सभी आधुनिक विचारों के बावजूद इनका मत ये भी था कि कुछ मानसिक रोग तथा असामान्य व्यवहार दैविक कारकों द्वारा भी उत्पन्न होते है।
iii. उत्तर ग्रीक एवं रोमवासियों का योगदान
हिपोक्रेट्स के बाद ग्रीक एवं रोमन चिकित्सक मानसिक रोगियों एवं असामान्य व्यवहार के अध्ययन में उनके द्वारा बतलाये गये मार्ग का अनुसरण करते रहे। मिस्र में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति हुई वहां के अनेक मंदिरों एवं गिरिजाघरों को प्रथम दर्जे के आरोग्यशाला में बदल दिया गया जहां के सुखद एवं आनन्द दायक वातावरण में मानसिक रोगियों को रखने का विशेष प्रावधान किया गया।कुछ रोमन चिकित्सको जैसे (Asclepiades , Cicero , Aretaeus) तथा (Galen) आदि द्वारा भी मानसिक रोगों के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया।
(Asclepiades) ने सबसे पहले तीव्र एवं चिरकालिक मानसिक रोगों के बीच अंतर किया तथा भ्रम, विभ्रम एवं व्यामोह के बीच स्पष्ट अंतर किया।
(Cicero) ने यह बतलाया कि शारीरिक रोग कि उत्पत्ति में सांवेगिक कारकों की भूमिका अधिक होती है।
(Aretaeus) ने सबसे पहले यह बताया कि उन्माद तथा विषाद एक ही बिमारी के दो मनोवैज्ञानिक अभिव्यक्ति है।
इनका विचार था कि जो लोग चिड़चिड़े तथा आक्रोशी होते हैं उनमें उन्माद जैसा मानसिक रोग उत्पन्न होने की सम्भावना होती है तथा जो व्यक्ति अधिक सुस्त एवं गंभीर प्रकृति के होते हैं उनमें विषाद जैसे मानसिक रोग उत्पन्न होने कि संभावना अधिक होती है।
(Galen) एक ग्रीक चिकित्सक थे जो रोम में आकर बसे थे इन्होंने मानसिक रोग के कारणों को दो श्रेणियों में बांटा - मानसिक कारण तथा शारीरिक कारण।
मानसिक कारणों में मस्तिष्क का दुर्घटनाग्रस्त हो जाना, अतिमद्यपान करना, डर, आघात, मासिक धर्म में गड़बड़ी, आर्थिक मंदता तथा प्रेम निराशा आदि प्रमुख बतलाये गये हैं।
जब ग्रीक एवं रोमन सभ्यता का सूर्यास्त होने लगा अर्थात् जब गैलन की मृत्यु 200 A.D. में हुई। और इन दार्शनिकों तथा चिकित्सकों द्वारा बतलाये गये विचार और उपचार की विधियां प्रभावहीन होने लगीं। फिर से लोग एवं चिकित्सक भी मानसिक रोग का कारण दुष्ट आत्मा का शरीर में प्रवेश कर जाना तथा दैविक प्रकोप को मानने लगे। इसे मनोविज्ञान के इतिहास में अन्धकार युग कहा जाता है जो 500 A.D. तक माना गया है। तथा 500 A.D. से 1500 A.D. तक के समय को मध्य युग कहा जाता है।
iv. इस्लामिक देशों में ग्रीक विचारों की मान्यता
मध्य युग के दौरान कुछ इस्लामिक देशों में पहले के ग्रीक चिकित्सकों के विचारों का प्रभाव बना रहा। बगदाद में पहला मानसिक अस्पताल खोला गया और ऐसा ही अस्पताल डमासकस एवं एलेप्पो में भी खोला गया। इन मानसिक अस्पतालों में रोगियों के साथ मानवीय व्यवहार करने तथा उपचार के मानवीय ढंगों पर अधिक बल डाला गया।
इस्लामिक चिकित्सा विज्ञान के सबसे प्रमुख चिकित्सक (Avicenna) हैं जिन्हें "चिकित्सकों का राजकुमार" (Prince of physicians) कहा जाता है इन्होंने अपनी पुस्तक (The Canon of Medicine) में कुछ मानसिक रोगों जैसे हिस्ट्रीया, मिर्गी, उन्माद, तथा विषाद आदि का विस्तृत रूप से अध्ययन किया और इनके मानवीय उपचार को बढ़ावा दिया।
3. मध्य युग में पैशाचिकी
जैसा कि बताया जा चुका है कि 500 से 1500 के समय को मध्य युग कहा जाता है। अन्धकार युग तथा मध्य युग में मानसिक रोगों के प्रति लोगों एवं चिकित्सकों के करीब - करीब एक समान विचार थे।
अन्धकार युग की शुरुआत ग्रीक एवं रोमन सभ्यता के सूर्यास्त तथा ईसाईयत के सूर्योदय से होती है। इस अवधि के चिकित्सकों एवं लोगों में एक बार फिर इस विश्वास की प्रधानता पायी गयी कि जब व्यक्ति के शरीर में बुरी आत्मा प्रवेश कर जाती है तो उसमें मानसिक रोग उत्पन्न हो जाता है। और इस विश्वास को सदृढ़ होने में ईसाईयत के बढ़ते बोलबाला ने आग में घी डालने का काम किया। इसी काल में यूरोप में नृत्योन्माद या टेरेन्टिज्म और वृकोन्माद जैसे मानसिक रोग भी तेजी से फैलने लगे।
सामूहिक पागलपन या टेरेन्टिज्म
इस बिमारी से ग्रसित व्यक्ति अपने घरों से बाहर आकर एक साथ मिलकर असंगत व्यवहार जैसे - उछलना कूदना, रोना, एक दूसरे के कपड़े फाड़ देना आदि करना प्रारंभ कर देते थे। इस सामूहिक पागलपन को इटली में टेरेन्टिज्म की संज्ञा दी गई।
वृकोन्माद
वृकोन्माद में मानसिक रोगी को ऐसा प्रतीत होता था कि वह एक भेड़िया बन गया है। अतः वह भेड़िया के समान ही बोलता था तथा उछलता कूदता था।4. मानवीय दृष्टिकोण का उद्भव
16वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही चिकित्सा विज्ञान के लोग मानसिक रोगियों के प्रति अंधविश्वासी एवं अमानवीय दृष्टिकोण को गलत बतलाते सामूहिक रूप से यह कहा कि मानसिक रोग किसी दुष्ट आत्मा या दैविक प्रकोप के कारण नहीं होता है। यह एक बिमारी है जिसका उपचार अन्य बिमारियों के समान मानवीय ढंग से होना चाहिए। इन चिकित्सकों में (Paracelsus), (Johann Weyer), (Raginald Scott) प्रमुख थे।
मानसिक रोगियों के प्रति सही मायनों में मानवता का दृष्टिकोण फ्रेंच चिकित्सक phillip pinel के सक्रिय प्रयासों से प्रारंभ हुआ। इन्हें आधुनिक मनोरोग विज्ञान (Modern Psychiatry) का जनक भी कहा जाता है। इन्होंने मानसिक रोगियों को लोहे की जंजीर से मुक्त कराया और उनके साथ मानवीय व्यवहार करने को कहा। जिसका परिणाम यह हुआ कि मानसिक रोगियों ने अपने उपचार में सहयोग दिखाना प्रांरभ कर दिया।
असामान्य मनोविज्ञान का आधुनिक उद्भव
बेन्जामिन रश ने मानसिक रोगियों का मानवीय उपचार करने के ख्याल से उनके लिए एक अलग रोगीकक्ष तैयार करवाया। और उनके तरह - तरह के मनोरंजन के साधन रखे ताकि उन्हें रूचिकर कार्यो को करने के लिए प्रेरित किया जाए। बाद में रश ने पुरुष मानसिक रोगियों तथा स्त्री मानसिक रोगियों के लिए अलग-अलग रोगीकक्ष बनवाया।
इन सब के बावजूद इनका सिध्दांत नक्षत्रशास्त्र से प्रभावित था और इनके लिए प्रमुख उपचार विधि रक्तमोचन तथा भिन्न-भिन्न तरह के शोधक (purgatives) का उपयोग किया जाना ही था। जो स्पष्टतः अमानवीय विधियां थी।
19वीं शताब्दी के प्रारंभ में एक महिला स्कूल शिक्षिका डोरोथिया डिस्क ने एक आन्दोलन की शुरुआत की। जिसका नाम मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान आन्दोलन (mental hygiene movement) था। हालांकि यूरोप में मानसिक रोगियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण 18वीं शताब्दी के अन्तिम के कुछ वर्षों पहले ही प्रांरभ हो गया था। परन्तु अमेरिका में इसकी शुरुआत 19वीं शताब्दी में हुई। इस आन्दोलन का उद्देश्य यह था कि मानसिक रोगियों को बंधन मुक्त कर दिया जाए और उन्हें ऐसे रोगीकक्ष में रखा जाए। जहां पर्याप्त हवा और धूप हो तथा उनकी नैतिकता के स्तर को बढ़ाने के लिए कुछ स्वीकारात्मक क्रियाएं जैसे खेती-बाड़ी करना, बढ़ईगिरी करना आदि कार्यों में लगाया जाए।
अमेरिका के अलावा इस काल में फ्रांस, जर्मनी, आस्ट्रिया में भी असामान्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए गए। फ्रांस के (Anton Mesmer) ने पशु चुम्बकत्व पर कार्य करके लोगों को चौंका दिया। पशु चुम्बकत्व को मेस्मेरिज्म की संज्ञा दी गई और बाद में इसे सम्मोहन (hypnosis) कहा गया।
इस प्रविधि में वे रोगियों में बेहोशी जैसी मानसिक स्थिति उत्पन्न कर देते थे। इसके बाद मानसिक रोगों के उपचार में कई चिकित्सक जैसे लिबाल्ट, बर्नहिम तथा शार्कों ने सम्मोहन का सफलतापूर्वक प्रयोग किया।
विल्हेम ग्रिसिंगर तथा एमिल क्रेपलिन इन दोनों चिकित्सकों ने मानसिक रोगों को एक दैहिक आधार मानते हुए इस बात पर बल डाला कि शारीरिक बिमारी तथा मानसिक बिमारी दोनों का स्वरूप लगभग समान होता है अर्थात जिस तरह से शरीर के किसी अंग विशेष में विकृति होने पर शारीरिक बिमारी होती है उसी तरह से मानसिक बिमारी भी किसी अंग विशेष में विकृति के फलस्वरूप ही होती है इसे मनोविज्ञान के इतिहास में "असामान्यता का अवयवी दृष्टिकोण" भी कहा जाता है।
सिगमंड फ्रायड जो एक तंत्रिका विज्ञानी तथा मनोरोगविज्ञानी थे। फ्रायड पहले ऐसे मनोरोग विज्ञानी थे जिन्होंने मानसिक रोगों के कारणों की व्याख्या करने में दैहिक कारकों के महत्व को कम करके मनोवैज्ञानिक कारकों के महत्व को अधिक ऊंचा बतालाया।
असामान्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में फ्रायड के योगदान में मुक्त साहचर्य विधि, अचेतन, स्वप्न विश्लेषण, मनोलैंगिक सिध्दांत, मनोरचनाएं आदि प्रमुख हैं।
(Adolf Meyer) के अनुसार असामान्य व्यवहार शारीरिक एवं मानसिक दोनों कारणों से होता है और इसलिए इसका उपचार मानसिक तथा दैहिक दोनों आधारों पर किया जाना चाहिए। मेयर के इस विचार को "मनोजैविक दृष्टिकोण" कहा जाता है।
इनके मनोजैविक सिध्दांत के अनुसार मानसिक रोग की उत्पत्ति में व्यक्ति का सामाजिक वातावरण भी एक महत्वपूर्ण कारक होता है यही कारण है कि (Rennie) ने इस सिध्दांत का नाम "मनोजैविक सामाजिक सिध्दांत" भी रखा है। मेयर का विचार था कि मानसिक रोगियों की उपयुक्त चिकित्सा तभी संभव है जब उसके जैविक पदार्थो जैसे हार्मोन्स, विटामिन को संतुलित करते हुए उसके घरेलू वातावरण के अंतर पारस्परिक सम्बन्धों को भी सुधारा जाए।
आज का असामान्य मनोविज्ञान: 1951 से अब तक
20वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में मानसिक अस्पतालों के काले करतूत लोगों के सामने आने लगे। अमेरिका के बहुत से मानसिक अस्पतालों में देखा गया कि वहां के रोगियों के साथ अमानवीय व्यवहार इतनी क्रूरता से किया जाता था कि उनका मानसिक रोग कम होने के बजाय और बढ़ता ही जाता था और कुछ का देहान्त भी हो जाता था (Kisker) ने ऐसे मानसिक अस्पतालों के हालातों का वर्णन करते हुए कहा है कि मानसिक रोगियों को इन अस्पतालों में एक छोटे कमरे में झुण्ड बनाकर रखा जाना, ऐसे कमरों में शौचालय का न होना, धूप और हवा लगभग न के बराबर मिलना, आधा पेट भोजन दिया जाना, कमसिन लड़कियों को अस्पताल से बाहर भेजकर शारीरिक व्यापार कराया जाना, अस्पताल अधिकारीयों द्वारा गाली गलौज करना आदि काफी सामान्य था।
फलस्वरूप इन मानसिक अस्पतालों के प्रति लोगों की मनोवृत्ति खराब हो गयी। अमेरिका में आजकल इन मानसिक अस्पतालों की जगह सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य केंद्र ने ले लिया है इन केन्द्रों का मुख्य उद्देश्य मानसिक रोगियों की मानवीय ढंग से उत्तम उपचार करना है। इन केन्द्रों द्वारा मूलतः पांच तरह की सेवाएं प्रदान की जाती है
- 24 घण्टे आपातकालीन देखभाल
- अल्पकालीन अस्पताली सेवा
- आंशिक अस्पताली सेवा
- बाह्य रोगियों की देखभाल
- प्रशिक्षण एवं परामर्श कार्यक्रम
अमेरिका एवं कनाडा में ऐसे केन्द्रों की संख्या काफी अधिक है जिन्हें अपने कार्य के लिए पर्याप्त सरकारी सहायता मिलती है। आज अमेरिका एवं कनाडा में सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य केन्द्रों को नवीनतम रूप से संकटकालीन हस्तक्षेप केन्द्र (Crisis Intervention Cantre) कहा जाता है। आजकल एक नये तरह के हस्तक्षेप केन्द्र को कार्यरत देखा गया है जिसे हाट लाइन दूरभाष केन्द्र (hotline telephone centre) कहते हैं ऐसे केन्द्रों में चिकित्सक रात या दिन के किसी समय मात्र दूरभाष से ही सूचना प्राप्त कर मानसिक रोगियों का उपचार करते हैं।
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