समाज मनोवैज्ञानिकों एवं समाजशास्त्रियों ने मनोवृत्ति को परिभाषित करने के लिए मूलतः निम्नांकित तीन दृष्टिकोण को अपनाया है -
1. एक विमीय दृष्टिकोण
इस दृष्टिकोण के अनुसार मनोवृत्ति को एक विमा अर्थात् मूल्यांकन पक्ष को ध्यान में रखकर उसे परिभाषित किया है। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने इस मूल्यांकन विमा को भावात्मक संघटक कहा है ।
( Fishbein & Ajzen , 1975 ) के अनुसार "किसी वस्तु के प्रति संगत रूप से अनुकूल या प्रतिकूल ढंग से अनुक्रिया की अर्जित पूर्वप्रवृत्ति को मनोवृत्ति कहते है।"
2. द्विविमीय दृष्टिकोण
( Fishbein & Ajzen , 1975 ) के अनुसार "किसी वस्तु के प्रति संगत रूप से अनुकूल या प्रतिकूल ढंग से अनुक्रिया की अर्जित पूर्वप्रवृत्ति को मनोवृत्ति कहते है।"
2. द्विविमीय दृष्टिकोण
इस दृष्टिकोण के अनुसार मनोवृत्ति की व्याख्या करने के लिए दो विमाओं का सहारा लिया गया है भावात्मक संघटक तथा संज्ञानात्मक संघटक।
संज्ञानात्मक संघटक से तात्पर्य किसी घटना का वस्तु के संबंध में व्यक्ति में जो विश्वास होता है। जैसे दलितों के प्रति ऊंची जाति के लोगों में एक खास विश्वास होता है।
भावात्मक संघटक से तात्पर्य किसी वस्तु घटना या व्यक्ति के प्रति सुखद या दुखद भाव की तीव्रता से होता है। सुखद भाव के होने पर हम उस वस्तु व्यक्ति या घटना को पसंद करते हैं तथा दुखद भाव के होने पर हम उन्हें नापसन्द करते हैं।
द्विविमीय दृष्टिकोण के अनुसार मनोवृत्ति संज्ञानात्मक तथा भावात्मक संघटक का एक संगठन है।
3. त्रिविमीय दृष्टिकोण
संज्ञानात्मक संघटक से तात्पर्य किसी घटना का वस्तु के संबंध में व्यक्ति में जो विश्वास होता है। जैसे दलितों के प्रति ऊंची जाति के लोगों में एक खास विश्वास होता है।
भावात्मक संघटक से तात्पर्य किसी वस्तु घटना या व्यक्ति के प्रति सुखद या दुखद भाव की तीव्रता से होता है। सुखद भाव के होने पर हम उस वस्तु व्यक्ति या घटना को पसंद करते हैं तथा दुखद भाव के होने पर हम उन्हें नापसन्द करते हैं।
द्विविमीय दृष्टिकोण के अनुसार मनोवृत्ति संज्ञानात्मक तथा भावात्मक संघटक का एक संगठन है।
3. त्रिविमीय दृष्टिकोण
आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने मनोवृत्ति की व्याख्या करने के लिए त्रिविमीय दृष्टिकोण अपनाया है। इस दृष्टिकोण के अनुसार मनोवृत्ति के पहले से चले आ रहे दो संघटकों को जोड़कर उसकी व्याख्या की जाती है।
अधिकतर आधुनिक मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मनोवृत्ति संज्ञानात्मक ,भावात्मक तथा व्यवहारात्मक संघटक का एक संगठित तंत्र है इसे मनोवृत्ति का ABC माडल कहा जाता है।
अधिकतर आधुनिक मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मनोवृत्ति संज्ञानात्मक ,भावात्मक तथा व्यवहारात्मक संघटक का एक संगठित तंत्र है इसे मनोवृत्ति का ABC माडल कहा जाता है।
A- Affective component (भावात्मक संघटक)
B- Behavioural component (व्यवहारात्मक संघटक)
C- Cognitive component (संज्ञानात्मक संघटक)
(Kretch ,crutchfield & ballachy 1982) के अनुसार "किसी एक वस्तु के संबंध में तीन संघटकों का स्थायी तंत्र मनोवृत्ति कहलाता है संज्ञानात्मक संघटक यानी वस्तु के बारे में विश्वास भावात्मक संघटक यानी वस्तु से संबंधित भाव तथा व्यवहारात्मक संघटक यानी उस वस्तु के प्रति क्रिया करने की तत्परता।"
1. आवश्यकता पूर्ति
प्रायः देखा गया है कि जिस व्यक्ति, वस्तु तथा घटना से हमारे लक्ष्य की प्राप्ति होती है एवं आवश्यकता की पूर्ति होती है उसके प्रति हमारी मनोवृत्ति अनुकूल होती है। तथा जिस व्यक्ति, वस्तु एवं घटना से हमारे लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है एवं आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती है उनके प्रति हमारी मनोवृत्ति प्रतिकूल हो जाती है।
2. दी गई सूचनाएं
मनोवृत्ति के निर्माण में व्यक्ति को दी गई सूचनाओं की भी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। आधुनिक समाज में भिन्न-भिन्न माध्यमों से व्यक्ति को सूचनाएं दी जाती है इन माध्यमों में रेडियो, टेलीविजन, अखबार आदि प्रमुख है इन माध्यमों से दी गई सूचनाओं के अनुसार व्यक्ति अपनी मनोवृत्ति विकसित करता है। इन माध्यमों के अलावा माता-पिता, भाई-बहन, साथियों एवं पड़ोसियों से भी व्यक्ति को सूचनाएं मिलती है।
3. सामाजिक सीखना
सामाजिक सीखना का प्रभाव भी मनोवृत्ति के विकास में काफी पड़ता है। समाज मनोविज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से यह स्पष्ट हो गया कि मनोवृत्ति के विकास में सीखने के तीन तरह की प्रक्रियाओं का महत्वपूर्ण स्थान है-
(Kretch ,crutchfield & ballachy 1982) के अनुसार "किसी एक वस्तु के संबंध में तीन संघटकों का स्थायी तंत्र मनोवृत्ति कहलाता है संज्ञानात्मक संघटक यानी वस्तु के बारे में विश्वास भावात्मक संघटक यानी वस्तु से संबंधित भाव तथा व्यवहारात्मक संघटक यानी उस वस्तु के प्रति क्रिया करने की तत्परता।"
मनोवृत्ति का विकास एवं निर्माण
मनोवृत्ति एक अर्जित प्रवृत्ति है भिन्न-भिन्न प्रयोगों के आधार पर समाज मनोवैज्ञानिको ने निष्कर्ष के रूप में कुछ ऐसे कारकों की ओर संकेत किया है जिससे मनोवृत्ति का विकास एवं निर्माण प्रभावित होता है कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारक निम्नांकित हैं-1. आवश्यकता पूर्ति
प्रायः देखा गया है कि जिस व्यक्ति, वस्तु तथा घटना से हमारे लक्ष्य की प्राप्ति होती है एवं आवश्यकता की पूर्ति होती है उसके प्रति हमारी मनोवृत्ति अनुकूल होती है। तथा जिस व्यक्ति, वस्तु एवं घटना से हमारे लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है एवं आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती है उनके प्रति हमारी मनोवृत्ति प्रतिकूल हो जाती है।
2. दी गई सूचनाएं
मनोवृत्ति के निर्माण में व्यक्ति को दी गई सूचनाओं की भी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। आधुनिक समाज में भिन्न-भिन्न माध्यमों से व्यक्ति को सूचनाएं दी जाती है इन माध्यमों में रेडियो, टेलीविजन, अखबार आदि प्रमुख है इन माध्यमों से दी गई सूचनाओं के अनुसार व्यक्ति अपनी मनोवृत्ति विकसित करता है। इन माध्यमों के अलावा माता-पिता, भाई-बहन, साथियों एवं पड़ोसियों से भी व्यक्ति को सूचनाएं मिलती है।
3. सामाजिक सीखना
सामाजिक सीखना का प्रभाव भी मनोवृत्ति के विकास में काफी पड़ता है। समाज मनोविज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से यह स्पष्ट हो गया कि मनोवृत्ति के विकास में सीखने के तीन तरह की प्रक्रियाओं का महत्वपूर्ण स्थान है-
- क्लासिक अनुबंधन
- साधनात्मक अनुबंधन
- प्रेक्षणात्मक सीखना
4. समूह संबंधन
समूह संबंधन से तात्पर्य व्यक्ति का किसी खास समूह के साथ संबंध कायम करने से होता है यह निश्चित है कि जब व्यक्ति अपना संबंध किसी खास समूह से जोडता है तो वह उस समूह के मूल्यों, मानदंडो, विश्वासों और तरीकों को भी स्वीकार करता है। ऐसे परिस्थिति में व्यक्ति इन मूल्यों एवं मानदंडो के स्वरूप के अनुसार एक नयी मनोवृत्ति विकसित करता है।
5. सांस्कृतिक कारक
प्रत्येक व्यक्ति का पालन-पोषण विभिन्न संस्कृति में होता है। तथा प्रत्येक संस्कृति का अपना मानदंड, मूल्य, परम्पराए, धर्म आदि होते हैं। व्यक्ति अपनी मनोवृत्ति इन्हीं सांस्कृतिक प्रारूप के अनुसार विकसित करता है तथा एक समाज की संस्कृति दूसरे समाज की संस्कृति से भिन्न होती है।
उदाहरण -
मुस्लिम संस्कृति और हिन्दू संस्कृति की तुलना करने पर हमें मिलता है कि मुस्लिम संस्कृति में पले व्यक्तियों कि मनोवृत्ति मौसेरे व चचेरे भाई बहनों में शादी के प्रति अनुकूल होती है। परन्तु हिन्दू संस्कृति में पले व्यक्तियों की मनोवृत्ति इस तरह के शादी के प्रति प्रतिकूल होती है।
इसी तरह मृत्यु के पश्चात व्यक्ति का अन्तिम संस्कार किस तरह से किया जाये इसमें भी हिन्दू एवं मुस्लिम संस्कृति में व्यक्तियों की मनोवृत्ति अलग-अलग होती है।
6. व्यक्तित्व कारक
मनोवृत्ति के निर्माण एवं विकास में व्यक्तित्व शील गुणों का भी काफी अधिक प्रभाव पड़ता है व्यक्ति उन मनोवृत्तियों को जल्दी सीख लेता है जो उनके व्यक्तित्व के शील गुणों के अनुकूल होती है। समाज मनोवैज्ञानिको ने भिन्न-भिन्न तरह की मनोवृत्तियां जैसे धार्मिक मनोवृत्ति, राजनैतिक मनोवृत्ति तथा संजात केन्द्र वाद में व्यक्तित्व कारकों के महत्व का अध्ययन किया है।
संजात केन्द्र वाद एक ऐसी मनोवृत्ति है जिसमें व्यक्ति अपने समूह या वर्ग को अन्य सभी समूहों या वर्गों की तुलना में श्रेष्ठ समझता है।
7. रूढ़िकृतियां
प्रत्येक समाज में कुछ रूढ़िकृतियां होती है जिनसे भी व्यक्ति की मनोवृत्तियों का विकास प्रभावित होता है। रूढ़िकृतियों से तात्पर्य किसी वर्ग या समुदाय के लोगों के बारे में स्थापित सामान्य प्रत्याशाओं तथा सामान्यीकरण से होता है।
7. रूढ़िकृतियां
प्रत्येक समाज में कुछ रूढ़िकृतियां होती है जिनसे भी व्यक्ति की मनोवृत्तियों का विकास प्रभावित होता है। रूढ़िकृतियों से तात्पर्य किसी वर्ग या समुदाय के लोगों के बारे में स्थापित सामान्य प्रत्याशाओं तथा सामान्यीकरण से होता है।
उदाहरण -
जैसे हमारे समाज में महिलाओं के प्रति एक रूढिकृति है कि वे पुरूषों की अपेक्षा अधिक धार्मिक एवं परामर्शग्राही होती है।
उसी तरह से हिन्दू समाज में एक महत्वपूर्ण रूढिकृति है कि गाय उनकी माता है परंतु मुस्लिम समुदाय में उस प्रकार की रूढिकृति नही पायी जाती है। फलस्वरूप गाय के प्रति हिन्दूओं की मनोवृत्ति मुस्लिमों की मनोवृत्ति की अपेक्षा अधिक अनुकूल होती है।
मनोवृत्ति का मापन
मनोवृत्ति मापन से तात्पर्य व्यक्ति में मनोवृत्ति की दिशा एवं उसकी मात्रा का पता लगाने से होता है।
मनोवृत्ति की दिशा से तात्पर्य है मनोवृत्ति धनात्मक है या ऋणात्मक।
तथा उसकी मात्रा से तात्पर्य इस बात से होता है कि मनोवृत्ति धनात्मक है तो कितनी मात्रा में या ऋणात्मक है तो कितनी मात्रा में।
मनोवृत्ति मापन में समाज मनोवैज्ञानिको द्वारा दो महत्वपूर्ण पूर्वकल्पना की जाती है
- व्यक्ति का व्यवहार मनोवृत्ति की वस्तु या घटना के प्रति एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में संगत होगा।
- व्यक्ति के व्यवहारों एवं कथनो द्वारा ही उसके मनोवृत्ति की मापन के बारे में अंदाज लगाया जा सकता है।
समाज मनोवैज्ञानिको एवं समाजशास्त्रियों ने मनोवृत्ति मापन के लिए जितने विधियों का प्रतिपादन किया है उसे (compbell, 1950) ने निम्नांकित चार भागों में विभाजित किया है -
- अप्रच्छन्न संरचित विधि
- अप्रच्छन्न असंरचित विधि
- प्रच्छन्न असंरचित विधि
- प्रच्छन्न संरचित विधि
अप्रच्छन्न संरचित विधि
इस विधि में भिन्न प्रकार के आत्म रिपोर्ट विधि आते हैं। आत्म रिपोर्ट विधि में मनोवृत्ति मापने के लिए मनोवृत्ति वस्तु से संबंधित कुछ प्रश्न दिये रहते हैं जिसे व्यक्ति पढ़कर स्वयं ही उसका उत्तर देता है इस तरह की प्रश्नावली को मनोवृत्ति मापनी या मनोवृत्ति प्रश्नावली कहा जाता है।
मनोवृत्ति मापनी में दिये गये प्रश्नों के उत्तरों के आधार पर व्यक्ति की मनोवृत्ति मापी जाती है।
मनोवृत्ति मापने के लिए मनोवृत्ति प्रश्नावली या मनोवृत्ति मापनीयों को निम्नांकित छः भागों में बांटा गया है
- थर्स्टन मापनी विधि
- लिकर्ट मापनी विधि
- बोगार्डस सामाजिक दूरी मापन विधि
- गेटमैन संचयी मापनी विधि
- मापनी विभेद प्रविधि
- शब्दार्थ विभेदक मापनी विधि
थर्स्टन मापनी विधि
मनोवृत्ति मापने के लिए L. L. Thurstone ने सबसे पहले मनोवृत्ति मापनी का प्रयोग किया।
थर्स्टन विधि द्वारा तैयार की गई मनोवृत्ति मापनी में इस तरह से कुल 25 से 30 कथन होते हैं। जिस व्यक्ति की मनोवृत्ति की माप करनी है उसे इन सभी कथनो को दे दिया जाता है। जिन कथनो से वे सहमत होते हैं उन पर सही का चिन्ह तथा जिन कथनों से वे असहमत होते हैं उस पर क्रास का चिन्ह लगाने के लिए उनसे कहा जाता है फिर सभी कथनो में से सहमत कथनो का एक औसत ज्ञात किया जाता है जिसके आधार पर उस व्यक्ति की मनोवृत्ति की माप होती है। यह औसत मान जितना ही अधिक होता है (अधिकतर 11 हो सकता है।) व्यक्ति की मनोवृत्ति उतनी अनुकूल मानी जाती है तथा जितना ही औसत मान कम होता है (न्यूनतम 1 हो सकता है।) व्यक्ति की मनोवृत्ति प्रतिकूल मानी जाती है।
लिकर्ट मापनी विधि
इस विधि का प्रतिपादन रेन्सिस लिकर्ट ने 1932 में किया लिकर्ट मापनी द्वारा मनोवृत्ति मापने की विधि बहुत कुछ थर्स्टन विधि के ही कुछ समान है। जिस व्यक्ति की मनोवृत्ति मापनी होती है उसे लिकर्ट मापनी दे दी जाती है और व्यक्ति प्रत्येक कथन को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया पांच श्रेणी अर्थात पूर्णतः सहमत, सहमत, अनिश्चित, असहमत, पूर्णतः असहमत में से किसी एक के रूप में करता है। बाद में मनोवृत्ति के प्रति अनुकूल मनोवृत्ति दिखलाने वाले कथनो के लिए क्रमशः 5,4,3,2,1 अंक दिया जाता है तथा प्रतिकूल मनोवृत्ति दिखलाने वाले कथनो के लिए क्रमशः 1,2,3,4 तथा 5 अंक दिया जाता है। प्रत्येक कथन पर प्रयोज्य द्वारा प्राप्त अंकों को एक साथ जोड़कर कुल प्राप्तांक ज्ञात किया जाता है। कुल प्राप्तांक अधिक होने से वस्तु के प्रति व्यक्ति की मनोवृत्ति अनुकूल तथा कम होने से व्यक्ति की मनोवृत्ति प्रतिकूल समझी जाती है।
बोगार्डस सामाजिक दूरी मापन विधि
(Bogardus, 1925) ने भिन्न-भिन्न राष्ट्रीयता के लोगों के प्रति मनोवृत्ति मापने के लिए सामाजिक दूरी मापनी का निर्माण किया। इस मापनी का मूल आधार यह है कि भिन्न-भिन्न राष्ट्रीयता के लोग एक-दूसरे से घनिष्ठ संबंध रखते हैं फलस्वरूप उसमें सामाजिक दूरी होती है और उनकी मनोवृत्ति एक-दूसरे के प्रति ऋणात्मक होती है।
जब हम लोग दूसरे जाति, धर्म, राष्ट्रीयता के लोगों के बारे में सोचते हैं तो इसमें से कुछ लोग हमारी सामाजिक घनिष्ठता में पूर्व अनुभव के आधार पर कम दूरी पर होते हैं परंतु कुछ लोग अधिक दूरी पर होते हैं इसे सामाजिक दूरी की संज्ञा देते हैं।
बोगार्डस ने सामाजिक दूरी मापनी बनाते समय सात ऐसे कथनो को सम्मिलित किया है जिससे किसी विशेष राष्ट्रीयता के लोगों के प्रति स्वीकृति की मात्रा का बोध होता है इसी स्वीकृति की मात्रा के आधार पर मनोवृत्ति की दिशा और मात्रा का बोध होने की पूर्व कल्पना की जाती है।
बोगार्डस द्वारा सामाजिक दूरी मापनी में सम्मिलित किये गये सात कथन निम्नांकित है -
- विवाह द्वारा निकट संबंधी के रूप में
- अपने क्लब में जिगरी दोस्त के रूप में
- अपने मोहल्ले में पड़ोसी के रूप में
- अपने पेशे में नौकरी देकर
- अपने देश में नागरिक के रूप में
- अपने देश में केवल अतिथि के रूप में
- अपने देश से निकाल कर बाहर करूंगा
गटमैन संचयी मापनी विधि
इस विधि का प्रतिपादन द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिकन सिपाहियों की मनोवृत्ति का अध्ययन करने के लिए गटमैन ने किया। इस विधि का सार तत्व यह है कि इसमें मनोवृत्ति मापने के लिए एक ऐसी मापनी तैयार की जाती है जिसके सभी एकांशो द्वारा एक ही विमा का मापन होता है।
इस तरह की मापनी को एक विमीय मापनी भी कहा जाता है गटमैन के अनुसार एक विमीय मापनी की मुख्य विशेषता यह होती है कि किसी एकांश पर व्यक्ति की अनुक्रिया के बारे में सभी एकांशो पर प्राप्त अंकों के कुल योग जिसे कुल प्राप्तांक कहा जाता है के आधार पर बतलाया जा सकता है इसका मतलब यह हुआ कि अगर मापनी एक विमीय है तो उच्चतम कुल प्राप्तांक प्राप्त करने वाला व्यक्ति मापनी के प्रत्येक कथन पर अपने से कम कुल प्राप्तांक करने वाले व्यक्ति से ऊपर होगा।
एक विमीय मापनी के इन गुणों को उदाहरण में दिखाया गया है -
- मेरी ऊंचाई 6 फिट से अधिक है। सहमत असहमत
- मेरी ऊंचाई 5 फिट से अधिक है। सहमत असहमत
- मेरी ऊंचाई 4 फिट से अधिक है। सहमत असहमत
इस उदाहरण में व्यक्ति एकांश संख्या 1 से सहमत होता है तो वह बाकी दो कथनो से भी सहमत होगा।
अतः मात्र संख्या एक की अनुक्रिया जानकर बाकी सभी कथनो की अनुक्रिया को पुनरूत्पादित किया जा सकता है। इससे गटमैन ने पुनरावर्तनीयता गुणांक कहा है। इन विभिन्न मापनियो में थर्स्टन विधि, लिकर्ट विधि तथा गटमैन विधि की उपयोगिता मनोवृत्ति मापने में अन्य विधियों से काफी अधिक है।
अप्रच्छन्न असंरचित विधि
इस विधि द्वारा भी मनोवृत्ति की माप सीधे अर्थात अप्रच्छन्न रूप से होती है इस विधि को असंरचित इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनमें आने वाली प्रविधियां जैसे - सर्वे साक्षात्कार तथा जीवन संबंधी टिप्पणीयां एवं लेख विश्लेषण आदि कुछ ऐसी होती हैं जिनमें शोधकर्ता या प्रयोगकर्ता को एक निश्चित औपचारिक नियम को नहीं मानना पड़ता है।
सर्वे साक्षात्कार
(Crutch Kretchfield & Ballechy, 1962) ने बताया कि सभी मनोवृत्ति मापनियों का एक सामान्य दोष यह है कि माप किये जाने वाला व्यक्ति सामने उपस्थित होना चाहिए।परन्तु समाज मनोवृत्ति शोध में ऐसी अनेक परिस्थितियां भी आतीं हैं जिनमें शोधकर्ता व्यक्तियों से दूर दराज में होता है और उनकी मनोवृत्ति को मापना भी आवश्यक समझता है इस तरह की मांग को पूरा करने के लिए सर्वे साक्षात्कार का प्रतिपादन किया गया।
सर्वे साक्षात्कार में शोधकर्ता बड़ी जनसंख्या से प्रतिनिधि प्रतिदर्श को चुनकर पहले से निर्मित प्रश्नों को उनसे एक एक करके पूछता है प्रायः वह दो तरह के प्रश्नों का निर्माण करता है निश्चित वैकल्पिक प्रश्न तथा मुक्तोत्तर प्रश्न।
जीवन संबंधी टिप्पणीयां एवं लेख विश्लेषण
इस विधि में चिठ्ठी, आत्मकथा, जीवनी, लिखित या मौखिक साक्षात्कार में व्यक्त किए गए मतों का विश्लेषण करके मनोवृत्ति की माप की जाती है।
प्रच्छन्न असंरचित विधि
मनोवृत्ति मापन की यह विधि पहले के दोनों विधियों से भिन्न है पहले के दोनों तरह के विधियों में व्यक्ति की मनोवृत्ति सीधे मापी जाती है दूसरे शब्दों में व्यक्ति को पता होता है कि उसकी मनोवृत्ति की माप की जा रही है। परन्तु प्रच्छन्न विधि में व्यक्ति को यह पता नहीं होता है कि उनकी अनुक्रियाओं द्वारा उसकी मनोवृत्ति की माप की जायेगी। अतः इस विधि में मनोवृत्ति की माप परोक्ष रूप से होती है। प्रच्छन्न असंरचित विधि में मनोवृत्ति की माप में उन विधियों को सम्मिलित किया जाता है जो मनोवृत्ति की माप अस्पष्ट एवं असंरचित परिस्थिति के प्रति अनुक्रिया द्वारा परोक्ष रूप से करती है। प्रक्षेपी प्रविधि इसका सबसे प्रमुख उदाहरण है।
प्रक्षेपी विधि द्वारा मनोवृत्ति मापने का सबसे बड़ा गुण यह बतलाया गया है कि इसमें व्यक्ति द्वारा किसी प्रकार की नकली अनुक्रिया नहीं की जाती है क्योंकि व्यक्ति को यह पता नहीं होता है कि उसके अनुक्रिया द्वारा उसकी मनोवृत्ति की माप होगी।
प्रच्छन्न संरचित विधि
इस विधि में भी मनोवृत्ति की माप परोक्ष (directly) रूप से होती है फिर भी यह विधि प्रच्छन्न असंरचित विधि से एक महत्वपूर्ण अर्थ में भिन्न है।
प्रच्छन्न संरचित विधि में मनोवृत्ति को मापने के लिए जिस परिस्थिति का उपयोग किया जाता है वह स्पष्ट होता है तथा उसकी एक अर्थपूर्ण संरचना होती है।
प्रच्छन्न संरचित विधि का एक अच्छा उदाहरण (Hommond, 1948) का त्रुटि पसन्द प्रविधि है इस विधि द्वारा उन्होंने मजदूर मालिक के सम्बन्धों के प्रति मनोवृत्ति को मापा था।
इस विधि में कुछ ऐसे एकांश तैयार किये जाते हैं जो मनोवृत्ति वस्तु के सम्बन्ध में तथ्यपूर्ण आंकड़ा देते हैं परन्तु वास्तव में वे सभी आंकड़े गलत होते हैं। उस व्यक्ति को जिसकी माप करनी होती है उन गलत आंकड़ों में से किसी एक को (जिसे वह अधिक सही एवं उचित समझता है) चुनकर उत्तर देना होता है। दिये गये उत्तरो के आधार पर उसकी मनोवृत्ति की माप की जाती है।
राष्ट्रीयकरण के प्रति व्यक्ति की मनोवृत्ति को मापने के लिए इस विधि के उदाहरण के रूप में एक दो एकांश इस प्रकार तैयार किये जा सकते हैं।
1. राष्ट्रीयकरण करने से भारत सरकार को प्रति वर्ष घाटा होता है ।
20 करोड़ 15 करोड़ 8 करोड़
2. राष्ट्रीयकृत संस्था में उत्पादन की मात्रा प्रति वर्ष कमती जाती है।
5% की दर से 8% की दर से 10% की दर से
इस ढंग से कई एकांश तैयार कर लिये जाते हैं और प्रत्येक एकांश द्वारा तथ्यपूर्ण आंकड़े प्रस्तुत किये जाते हैं जो वास्तव में सभी के सभी गलत होते हैं। परन्तु प्रयोज्य को उसका पता नहीं होता है और वह आंकड़ों को सही समझकर जवाब देता है।
उदाहरण के तौर पर कुछ मापनियों के लिंक दिए गए हैं जो स्नातक द्वितीय वर्ष के छात्रों के प्रायोगिक परीक्षण में उपयोगी हैं।
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