शरीर दुष्क्रिया आकृति विकृति (Body dysmorphic disorder)
इस विकृति में व्यक्ति को अपने चेहरे पर कुछ काल्पनिक दोष उत्पन्न होने की आशंका होती है। जैसे सम्भव है कि व्यक्ति को यह विश्वास हो जाए कि उसकी नाक का आकार दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है या उसके ऊपरी होंठ ऊपर की दिशा में तथा निचला होंठ नीचे की दिशा में लटकता जा रहा है। इस तरह के कल्पित दोष से व्यक्ति इतना चिंतित रहता है कि उसमें समायोजन संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।इस विकृति के रोगी बहुत कम देखने को मिलते हैं जापान और कोरिया में इस विकृति को सामाजिक दुर्भीति के एक प्रकार के रूप में समझा जाता है।
DSM IV (TR) के अनुसार इस तरह की चिंता व्यक्ति में कम से कम छः महीने तक बने रहने पर ही उसे रोगभ्रम की श्रेणी में रखा जा सकता है।
जब ऐसे रोगियों से उनके लक्षण के बारे में विस्तृत रूप से पूछा जाता है तो वे उसका सही-सही वर्णन करने में असमर्थ रहते हैं। जब मेडिकल परिक्षण से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उनकी आशंकाएं निराधार है और वे शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं तो भी उन्हें यह विश्वास नहीं होता कि उनमें कोई रोग नहीं है बल्कि वह मेडिकल परीक्षण में कुछ कमी रह जाने की बात करते हैं।
यह रोग पुरूषों और महिलाओं में समान रूप से होता है।
रोगभ्रम (Hypochondriasis)
इस विकृति में रोगी अपने स्वास्थ्य के बारे में जरूरत से ज्यादा सोचता है तथा उसके बारे में चिंतित रहता है। उसके मन में अक्सर यह बात बनी रहती है कि उसे कोई न कोई शारीरिक बिमारी हो गयी है और उसकी यह चिंता इतनी अधिक हो जाती है कि वह दिन प्रतिदिन के जिदंगी के साथ समायोजन करने में असमर्थ रहता है।DSM IV (TR) के अनुसार इस तरह की चिंता व्यक्ति में कम से कम छः महीने तक बने रहने पर ही उसे रोगभ्रम की श्रेणी में रखा जा सकता है।
जब ऐसे रोगियों से उनके लक्षण के बारे में विस्तृत रूप से पूछा जाता है तो वे उसका सही-सही वर्णन करने में असमर्थ रहते हैं। जब मेडिकल परिक्षण से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उनकी आशंकाएं निराधार है और वे शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं तो भी उन्हें यह विश्वास नहीं होता कि उनमें कोई रोग नहीं है बल्कि वह मेडिकल परीक्षण में कुछ कमी रह जाने की बात करते हैं।
यह रोग पुरूषों और महिलाओं में समान रूप से होता है।
कायिक विकृति (Somatization disorder)
इस विकृति में व्यक्ति को कई प्रकार की शारीरिक समस्याएं होती हैं जबकि वह शारीरिक या दैहिक रूप से स्वस्थ रहता है इस विकृति के रोगी में कम से कम आठ तरह के लक्षण निश्चित रूप से होते हैं।चार तरह के दर्द के लक्षण (4)
सिरदर्द, पेट दर्द, पीठ दर्द, छाती दर्द, पेशाब करने के दौरान दर्द, मासिक धर्म के दौरान दर्द तथा लैंगिक क्रिया के दौरान दर्द आदि में से चार लक्षण रोगी में होने चाहिए।
दो आमाशयांत्र लक्षण (2)
व्यक्ति को मिचली, कै, डायरिया, पेट फूलना आदि में से कम से कम दो अवश्य हुआ हो।
एक लैंगिक लक्षण (1)
लैंगिक तटस्थता, स्खलन समस्याएं, अनियमित मासिक स्राव, मासिक स्राव में अत्यधिक रक्त निकलना आदि में से कम से कम एक अवश्य हुआ हो।
एक कूटस्नायविक लक्षण (1)
अंधापन, द्विदृष्टि, बहरापन, स्पर्श संवेदन की कमी, विभ्रम, पक्षाघात, कंठ में दर्द या खाते समय निगलने में कठिनाई, पेशाब करने में कठिनाई आदि कूट स्नायविक लक्षण में से कम से कम एक अवश्य होना चाहिए।
इस विकृति की शुरुआत किशोरावस्था में होती है तथा DSM IV (TR) के अनुसार इसकी शुरुआत निश्चित रूप से 30 साल के उम्र से पहले होती है। इस विकृति को (Briquet's Syndrome) भी कहा जाता है क्योंकि इस तरह के विकृति पर सबसे पहले फ्रेंच मनश्चिकित्सक (Pierre Briquet) का ध्यान गया था और उन्होंने इसका सबसे पहले वैज्ञानिक अध्ययन किया था।
कायप्रारुप दर्द विकृति (Somatoform pain disorder or Psychalgia)
इस विकृति में व्यक्ति गंभीर और स्थायी तौर पर दर्द का अनुभव करता है जबकि इस तरह के दर्द का कोई दैहिक या शारीरिक कारण नहीं होता है। तथा इस तरह का दर्द प्रायः ह्रदय या अन्य महत्वपूर्ण अंगो से संबंधित होता है।मेडिकल जांच में ऐसे रोगियों के दर्द का कोई भी स्पष्ट आधार या विकृति नहीं मिलती है। सामान्यतः इस तरह के दर्द की उत्पत्ति का संबंध किसी प्रकार के मानसिक संघर्ष या तनाव से होता है।
रूपांतर विकृति वैसी विकृति है जिसमें व्यक्ति के तनाव और मानसिक संघर्ष की अभिव्यक्ति कुछ दैहिक लक्षणों के रूप में होती है और ऐसे दैहिक लक्षणों का कोई दैहिक आधार नहीं होता है।
जैसे एक व्यक्ति को हस्तमैथुन की बुरी आदत थी इससे उसमें चिंता और तनाव हमेशा बनी रहती थी अचानक एक दिन उसे यह अनुभव होने लगा कि उसका हाथ ही नहीं उठ रहा है क्योंकि उसके हाथ में पक्षाघात हो गया है मेडिकल जांच में पक्षाघात के कोई दैहिक सबूत नहीं पाये गये।
स्पष्ट है यहां व्यक्ति अपने तनाव और मानसिक संघर्ष की अभिव्यक्ति दैहिक लक्षण (पक्षाघात) के रुप में कर रहा है।
रूपांतर हिस्टीरिया (Conversion histeria)
कायप्रारूप विकृति में सबसे सामान्य एवं प्रबल विकृति रूपांतर विकृति है जिसे पहले हिस्टीरिया के नाम से जाना जाता था। इस विकृति के लिए फ्रायड ने सबसे पहले रुपांतर शब्द का प्रयोग किया था उनका विचार था कि इस रोग में व्यक्ति की दमित इच्छाएं संवेदी और पेशीय लक्षणों में बदलकर उनके कार्यों को अवरूद्ध कर देती हैं।रूपांतर विकृति वैसी विकृति है जिसमें व्यक्ति के तनाव और मानसिक संघर्ष की अभिव्यक्ति कुछ दैहिक लक्षणों के रूप में होती है और ऐसे दैहिक लक्षणों का कोई दैहिक आधार नहीं होता है।
जैसे एक व्यक्ति को हस्तमैथुन की बुरी आदत थी इससे उसमें चिंता और तनाव हमेशा बनी रहती थी अचानक एक दिन उसे यह अनुभव होने लगा कि उसका हाथ ही नहीं उठ रहा है क्योंकि उसके हाथ में पक्षाघात हो गया है मेडिकल जांच में पक्षाघात के कोई दैहिक सबूत नहीं पाये गये।
स्पष्ट है यहां व्यक्ति अपने तनाव और मानसिक संघर्ष की अभिव्यक्ति दैहिक लक्षण (पक्षाघात) के रुप में कर रहा है।
रूपातंर हिस्टीरिया के लक्षण
रूपांतर हिस्टीरिया के नैदानिक स्वरूप को समझने के लिए उसके इसके लक्षणों को निम्नांकित दो भागों में बांटा गया है- संवेदी लक्षण
- Anesthesia - इसमें रोगी को किसी प्रकार की कोई संवेदना नहीं होती है अर्थात संवेदन शून्य हो जाता है।
- Hypesthesia - इसमें रोगी को अपने शरीर के किसी हिस्से में संवेदना थोड़ी कम हो जाती है लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होती है।
- Hyperaesthesia - इसमें मरीज को अपने शरीर में जरूरत से ज्यादा संवेदनशीलता महसूस होती है यानी छोटी-छोटी चीजें भी बहुत ज्यादा महसूस होती हैं।
- Analgesia - इसमें रोगी को दर्द का बिल्कुल भी अहसास नहीं होता है।
- Paresthesia - इसमें रोगी असाधारण संवेदन जैसे किसी प्रकार की घंटी सुनने की संवेदना का अनुभव करता है।
इस बीमारी में मरीज को देखने (दृष्टि) और सुनने (श्रवण) से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं-
दृष्टि संबंधी लक्षण- धुंधला दिखना, रोशनी से परेशानी, दो-दो चीजें दिखना, एक आंख से कम दिखना या पढ़ते समय अक्षर आपस में मिल जाना।
श्रवण संबंधी लक्षण- आंशिक या पूरा बहरापन, कानों में अस्पष्ट आवाजें या गूंज सुनाई देना और कभी-कभी भगवान या किसी अलौकिक शक्ति की आवाज सुनने का अहसास होना।
- पेशीय लक्षण
- Paralysis - इसमें व्यक्ति के किसी एक हाथ या पैर में पक्षाघात हो जाता है जिससे उस अंग से जुड़ा काम रुक जाता है। कभी-कभी यह पक्षाघात सिर्फ किसी खास काम तक सीमित रहता है। उदाहरण के तौर पर हो सकता है कि खाना खाते वक्त हाथ न चले। लेकिन लिखने, बंदूक चलाने या कोई वाद्ययंत्र बजाने जैसे कामों में हाथ बिल्कुल ठीक काम करे।
- Tremors & twiches - पक्षाघात के अलावा काँपना, मांसपेशियों में सिकुड़न या चलते-फिरते वक्त झटके लगना भी आम लक्षण हैं।
- Astasia abasia - इसमें व्यक्ति बैठे या लेटे होने पर अपने पैरों को ठीक से नियंत्रित कर सकता है लेकिन खड़े होने या चलने पर पैर सही से काम नहीं करते हैं । जिससे चलते वक्त लड़खड़ाहट होती है।
- Aphonia - इसमें रोगी बहुत धीमी आवाज या फुसफुसाहट की आवाज में ही बोल पाता है।
- Mutism - इसमें रोगी बिल्कुल बोल नहीं पाता है।
- Hysterical convulsion - कभी-कभी रोगी को हिस्टीरिकल ऐंठन भी होता है जो मिर्गी के दौरे जैसा लगता है। इसमें रोगी मूर्च्छा की स्थिति में चला जाता है।
रूपांतर हिस्टीरिया का निदान
- व्यक्ति में एक या एक से अधिक ऐसी समस्या हो जो पेशीय या संवेदी कार्यों को प्रभावित करे । और ऐसा लगे जैसे यह कोई न्यूरोलॉजिकल (मस्तिष्क से जुड़ी) बीमारी हो।
- व्यक्ति में लक्षण मनोवैज्ञानिक कारकों से उत्पन्न हुआ हो।
- लक्षण व्यक्ति ने खुद से जानबूझकर उत्पन्न नहीं किए हों।
- जांच करने पर भी इन लक्षणों की वजह कोई शारीरिक बीमारी न हो।
- लक्षण व्यक्ति के सामाजिक, पेशेवर या अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में परेशानी पैदा करते हों।
- लक्षण दर्द या लैंगिक दुष्क्रिया से जुड़ी समस्याओं तथा कायिक विकृति से संबंधित न हों और न ही किसी अन्य मेडिकल विकृति से संबंधित हो।
रूपांतर हिस्टीरिया के कारण
रूपांतर हिस्टीरिया के कई कारण हैं-
1. डरावनी स्थिति से बचना
जब व्यक्ति कुछ खौफनाक एवं अप्रियकर परिस्थिति से बचना चाहता है तो ऐसे परिस्थिति में उसमें रुपांतरित हिस्टीरिया के लक्षण विकसित हो जाते हैं।
जैसे कुछ वायु सैनिकों को बिना किसी शारीरिक विकृति के ही बहुत धुंधला दिखने लगा था यह लक्षण उस समय हवाई अड्डे पर विकसित हुआ जब उन्हें हवाई जहाज पर चढ़कर उसे उड़ाना था बाद में इस तरह का लक्षण उस समय समाप्त हो गया जब उन सैनिकों को अस्पताल में भर्ती करवाया ही जा रहा था इस उदाहरण से स्पष्ट है कि वायु सैनिक जो हवाई जहाज नहीं उड़ाना चाहते थे उस संघर्षमय एवं खौफनाक परिस्थिति का सामना अपने आंखों द्वारा धुंधला दिखने का लक्षण विकसित करके किया।
2. व्यक्तित्व शीलगुण
- जिन लोगों को दूसरों की बातें आसानी से मान लेने की आदत होती है उनमें रूपांतर हिस्टीरिया जल्दी हो सकता है।
- जिनमें भावनाएं कमजोर होती हैं, उत्तेजना ज्यादा होती है, बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहने की आदत होती है या रिश्तों में चालाकी करते हैं। उनमें भी यह रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
- जिन महिलाओं का व्यक्तित्व आकर्षक होता है लेकिन वे यौन संबंधों में रुचि नहीं रखतीं। उनमें भी यह समस्या तेजी से बढ़ सकती है।
3. लक्ष्य पाने की चाहत
जब व्यक्ति किसी वांछित लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है परंतु सामान्यतः नहीं कर पाता है तो वैसी परिस्थिति में भी उस व्यक्ति में रूपान्तरित हिस्टीरिया विकसित हो जाता है। इस रोग का ढोंग रचकर व्यक्ति अपने वांछित लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।
उदाहरण
एक 10 साल का बच्चा था जिसे अपने परिवार से बहुत प्यार मिलता था। लेकिन उसे चलते समय पैर में लड़खड़ाहट और झटके की शिकायत होने लगी। मनोचिकित्सा से पता चला कि पहले वह अपने परिवार का सबसे प्यारा था। लेकिन जब पिता का एक्सीडेंट हुआ तो परिवार का सारा ध्यान पिता की ओर चला गया। इससे बच्चा परेशान और तनाव में रहने लगा। उसने इस समस्या से निपटने के लिए पैर में लड़खड़ाहट और झटके दिखाने शुरू कर दिए।
4. अवांछित इच्छाओं से बचाव
किसी अवांछित इच्छा का दमन करने पर भी व्यक्ति में कभी-कभी रूपांतरित हिस्टीरिया विकसित हो जाता है।
उदाहरण
एक व्यक्ति की पत्नी उसे छोड़कर किसी और के साथ चली गई जिसके बाद उसके पैरों में पक्षाघात (लकवा) हो गया। मनोचिकित्सा से पता चला कि वह अपनी पत्नी और उसके प्रेमी को मार डालना चाहता था। लेकिन उसने इस खतरनाक इच्छा का दमन कर दिया। पैरों में लकवा होने से वह अपनी इस इच्छा को पूरा करने से रुक गया। इससे साफ है कि रूपांतर हिस्टीरिया ऐसी दमन की गयी इच्छाओं से बचने का एक तरीका बन जाता है।
5. शारीरिक समस्या या दुर्घटना
किसी दुर्घटना या बीमारी के बाद अगर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहता है तो उसमें यह रोग हो सकता है।
अगर किसी तरह के दुर्घटना से व्यक्ति को अपने जोखिम भरे किसी व्यावसायिक या अन्य उत्तरदायित्व से छुटकारा मिलता है तो व्यक्ति यही चाहेगा कि वह कुछ और दिन इसी तरह बीमार रहे ताकि उसे उत्तरदायित्व से छुटकारा मिला रहे। ऐसी परिस्थिति में रूपान्तरित हिस्टीरिया हो जाने की तीव्र सम्भावना होती है।
6. सामाजिक-सांस्कृतिक कारण
यह गाँवों, कम पढ़े-लिखे लोगों (जिन्हें मेडिकल एवं मनोवैज्ञानिक संप्रत्ययों के बारे में कम ज्ञान होता है।) और निम्न आर्थिक स्तर के लोगों में ज्यादा होता है। महिलाओं में यह रोग पुरुषों की अपेक्षा अधिक होता है और महिलाओं में इस रोग के लक्षण शरीर के दायीं ओर की तुलना में बायीं ओर अधिक होते पाया गया है।
कायप्रारूप विकृति का उपचार
कायप्रारूप विकृति के उपचार के लिए कई प्रविधियाॅं निम्नांकित हैं-
1. सामना
इस प्रविधि में चिकित्सक रोगी को अपने लक्षणों के प्रति अधिक जागरूकता बढ़ाकर उसका उपचार करने की कोशिश करते हैं।
जैसे चिकित्सक रूपांतर हिस्टीरिया के एक ऐसे रोगी को जिसे दिखलाई नहीं दे रहा था। उसे कुछ नहीं दिखलाई देने के वावजूद भी उसका निष्पादन दृष्टिगत कार्यों पर अच्छा बतलाता है। इसका परिणाम यह होता है कि रोगी की दृष्टि चेतना बढ़ जाती है और रोगी में धीरे-धीरे सामान्य दृष्टि लगभग कायम हो जाती है।
2. सुझाव
कुछ चिकित्सकों का मत है कि यदि चिकित्सक पूरे विश्वास के साथ रोगी को मात्र यह सरल सुझाव देता है कि उसके लक्षण अब जल्द ही दूर हो जाएँगे तो इससे भी रोगी के उपचार पर अनुकूल प्रभाव पड़ते देखा गया है।
रूपांतर हिस्टीरिया के रोगियों में सुझावशीलता अधिक होता है और कुछ चिकित्सकों का दावा रहा है कि यदि ऐसे रोगियों को पुरे विश्वास के साथ यह सुझाव दिया जाता है कि उसके रोग के लक्षण समाप्त हो जाएँगे तो सचमुच में ऐसे रोग के लक्षण बहुत हद तक समाप्त हो जाते दिखते है।
3. मनोवैश्लेषिक सूझ
मनोवैश्लेषिक चिकित्सा में कायप्रारुप विकृति के उपचार के लिए रोगी में मनोवैश्लेषिक सूझ उत्पन्न करने पर अधिक बल डाला जाता है। इस तरह के सूझ के उत्पन्न हो जाने पर रोगी उन मानसिक संघर्षों के बारे में उत्तम समझ हासिल कर लेता है जो उसमें दैहिक लक्षण उत्पन्न किये होते हैं।
4. अन्य चिकित्साएँ
कायप्रारूप विकृति के उपचार में दूसरे तरह की चिकित्साओं का भी उपयोग सफलतापूर्वक किया गया है। जैसे (Amitriptyline) जो एक तरह का विषादविरोधी औषध है तथा जिसका दर्द निवारक प्रभाव भी होता है, से दर्द विकृति के रोगियों को काफी लाभ होता है।
दर्द से राहत पाने में सही सलाह भी बहुत मदद करती है। मरीज को यह बताया जाता है कि इलाज का उद्देश्य दर्द को पूरी तरह खत्म करना नहीं है बल्कि उस पर काबू पाना है। ताकि वे अपनी जिंदगी ठीक से जी सकें। इससे भी उन्हें काफी लाभ होता है। इसके अलावा पारिवारिक चिकित्सा को भी इस समस्या के इलाज में महत्वपूर्ण माना गया है।
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