मनोविच्छेदी विकृति के प्रकार, लक्षण, कारण एवं उपचार बी० ए० द्वितीय वर्ष


मनोविच्छेदी स्मृतिलोप

पहले इसे मनोजनिक स्मृतिलोप (Psychogenic amnesia) कहा जाता था यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति तनाव या मानसिक आघात से जुड़ी अपनी महत्वपूर्ण यादों या अनुभूतियों को पूरी तरह या आंशिक रूप से भूल जाता है। इससे उसकी सामाजिक और रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर बुरा असर पड़ता है। इसके कई प्रकार हैं:

1. पश्चगामी स्मृतिलोप 
आघात से ठीक पहले की यादें भूल जाना।
2. उत्तर आघातीय स्मृतिलोप 
आघात के बाद की यादें भूल जाना।
3. अग्रगामी स्मृतिलोप 
आघात के बाद नई चीज़ें याद न रख पाना।
4. चयनात्मक स्मृतिलोप 
किसी घटना की कुछ खास बातें याद करना, बाकी भूल जाना।
5. सामान्यीकृत स्मृतिलोप
पूरी ज़िंदगी की यादें भूल जाना।
6. सतत स्मृतिलोप 
एक खास समय के बाद की यादें भूल जाना।
7. क्रमबद्ध स्मृतिलोप
किसी खास व्यक्ति या समूह से जुड़ी सारी यादें भूल जाना।

आखिरी तीन (सामान्यीकृत, सतत और क्रमबद्ध) को ज़्यादा गंभीर माना जाता है। अगर ये लक्षण दिखें तो विकृति गंभीर हो सकती है। यह बच्चों से लेकर वयस्कों तक किसी भी उम्र में हो सकता है और कुछ मिनटों से लेकर सालों तक रह सकता है।

मनोविच्छेदी आत्मविस्मृति

पहले इसे मनोजनिक आत्मविस्मृति (Psychogenic fugue)  कहा जाता था। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी याददाश्त खो देता है और अचानक अपने घर को छोड़कर कहीं दूर चला जाता है। वहां वह नया नाम, नया काम और नई जिंदगी शुरू करता है। कई दिन, महीने या साल बाद उसे अचानक होश आता है कि वह नई जगह पर है और उसे समझ नहीं आता कि वह वहां कैसे और क्यों आया था। इस दौरान वह फिर अपनी नई जिंदगी के बारे में सबकुछ भूल जाता है।

अध्ययनों से पता चला है कि यह बीमारी किसी बड़े मानसिक आघात (जैसे दुखद घटना) के बाद शुरू होती है। ऐसे लोग अक्सर अपरिपक्व, आत्मकेंद्रित और सुझावों को जल्दी मानने वाले होते हैं। जब उन्हें ऐसी परेशानी का सामना करना पड़ता है जिससे बचना मुश्किल होता है तो वे उस दुख को भूलने और उससे दूर जाने की कोशिश करते हैं। लेकिन जब तनाव बहुत बढ़ जाता है तो वे अपनी पहचान और इच्छाओं को दबा देते हैं जो बाद में इस बीमारी का कारण बनता है। 
यह स्मृतिलोप चयनात्मक होता है और सिर्फ उन घटनाओं से जुड़ा होता है जो बहुत परेशान करने वाली और आत्म-सम्मान को चुनौती देने वाली होती हैं। इस विकृति में व्यक्ति सामान्य दिखता है और मुश्किल काम भी ठीक से कर सकता है। यह बीमारी बहुत कम लोगों (लगभग 0.2% जनसंख्या) में पाई जाती है यानी इसका प्रचलन काफी कम है।

मनोविच्छेदी पहचान विकृति

इस बीमारी को पहले बहुव्यक्तित्व विकार (Multiple personality disorder) कहा जाता था।  इसमें एक व्यक्ति के अंदर दो या उससे ज्यादा अलग-अलग व्यक्तित्व होते हैं। हर व्यक्तित्व का अपना संवेगात्मक और भावात्मक दृष्टिकोण अलग होता है। साथ ही अलग सोच और समझ भी होती है। व्यक्ति कुछ समय (महीनों या सालों) तक एक व्यक्तित्व में रहता है फिर अपने आप दूसरे व्यक्तित्व में चला जाता है। ये व्यक्तित्व एक-दूसरे से बहुत अलग होते हैं। उदाहरण के तौर पर, एक व्यक्तित्व में व्यक्ति हंसमुख और बेफिक्र हो सकता है तो दूसरे में गंभीर और चिंतित। जो जरूरतें या व्यवहार मुख्य व्यक्तित्व में दबे रहते हैं वे दूसरे व्यक्तित्वों में खुलकर सामने आते हैं।
मनोविच्छेदी विकृति के प्रकार, लक्षण, कारण एवं उपचार बी० ए० द्वितीय वर्ष
DID में एक व्यक्ति के अंदर कई अलग-अलग व्यक्तित्व अवस्थाएँ हो सकती हैं। एक अध्ययन के अनुसार औसतन ऐसे व्यक्तित्वों की संख्या 15 तक हो सकती है। लेकिन कुछ खास मामलों में यह संख्या बहुत ज्यादा भी हो सकती है। जैसे (Truddi Chase) के केस में, जहाँ उनके अंदर 92 अलग-अलग व्यक्तित्व पाए गए। जब किसी व्यक्ति में दो से ज्यादा व्यक्तित्व होते हैं तो आमतौर पर हर व्यक्तित्व को एक-दूसरे के बारे में कुछ पता होता है। वे आपस में बात भी कर सकते हैं और एक-दूसरे के साथ मिलकर काम भी कर सकते हैं।  व्यक्तित्व एक-दूसरे को समझते हैं और सहयोगी की तरह व्यवहार कर सकते हैं।

DID की शुरुआत आमतौर पर बचपन में ही हो जाती है लेकिन किशोरावस्था से पहले इसकी पहचान मुश्किल से होती है। यह दूसरी मानसिक बीमारियों की तुलना में ज्यादा लंबे समय तक रहने वाली और गंभीर बीमारी है और इससे पूरी तरह ठीक होना बहुत कम लोगों के लिए संभव हो पाता है। यह बीमारी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में कहीं ज्यादा देखी जाती है। इसमें व्यक्तित्व विभाजन के अलावा भी कुछ लक्षण होते हैं। जैसे विषाद, बोर्डर रेखीय व्यक्तित्व तथा कायप्रारूप विकृति अधिक सामान्य हैं।

केस उदाहरण

जूली एक 36 साल की शादीशुदा महिला थी जिसका 8 साल का दत्तक बेटा ऐडम था। ऐडम स्कूल में बार-बार फेल हो रहा था। इसलिए जूली उसे मनोवैज्ञानिक क्लिनिक ले गई। वहां जांच के दौरान चिकित्सक को जूली के बारे में और जानने की जरूरत पड़ी।
जूली एक सहयोगी और समझदार महिला थी जिसे खुद के बारे में अच्छी जानकारी थी। छठे सत्र में उसने अचानक चिकित्सक से कहा कि वह किसी और को लाना चाहती है। चिकित्सक को पहले लगा कि कोई बाहर इंतजार कर रहा है लेकिन जूली ने आंखें बंद कीं फिर थोड़ी देर बाद खोलीं और सिगरेट निकालकर बुझाते हुए कहा "मैं चाहती हूं कि जूली सिगरेट न पिए। उसे तंबाकू की गंध से नफरत है।" उसने खुद को जेरी (दूसरा व्यक्तित्व) बताया। फिर एक घंटे बाद उसी तरह आंखें बंद कर तीसरे व्यक्तित्व जेनी के रूप में सामने आई।
जेनी यह बतलायी कि वह मौलिक व्यक्तित्व है और यह भी बतलायी कि 3 वर्ष की आयु में वह जेरी हो गयी थी तथा आठ साल की आयु होने पर वह जुली हो गयी थी। अपने क्षुब्ध पारिवारिक परिस्थिति से उत्पन्न तनाव से निपटने के लिए दो विभिन्न समयों में वह दो व्यक्तित्व का सृजन की थी।

जेनी ने बताया कि 3 से 8 साल की उम्र के बीच उसकी शारीरिक देखभाल नहीं हुई। पड़ोसी ने उसका यौन शोषण किया और 8 साल की उम्र में माता-पिता ने उसे "न सुधरने वाला" कहकर दूसरों को गोद दे दिया। उसी समय वह जेनी से जूली बन गई। जूली का व्यक्तित्व सरल था और वह मुश्किल हालातों से निपट सकती थी। लेकिन जूली को जेरी के व्यक्तित्व के बारे में कुछ नहीं पता था। चिकित्सा शुरू होने से दो साल पहले जब जूली 34 साल की थी। उसे जेरी के बारे में पता चला। जूली, जेनी और जेरी तीनों व्यक्तित्व एक-दूसरे से अलग थे। 
जेनी जो मूल व्यक्तित्व थी बहुत शर्मीली, डरी हुई और असुरक्षित थी। वह कभी-कभी 3 साल के बच्चे की तरह व्यवहार करती थी। उसे जूली और जेरी दोनों के बारे में पता था और वह चाहती थी कि जूली और जेरी एक दिन मिलकर ऐडम की अच्छी मां बनें।
जूली तीनों व्यक्तित्वों में सबसे संतुलित थी। वह विषमलिंगी (heterosexual) थी और एक अच्छी मां बनने के सारे गुण उसमें थे लेकिन उसे सिगरेट पीने की बुरी आदत थी। जूली को जेरी के बारे में पता नहीं था।
जेरी जूली से बिल्कुल उलट थी। वह समलिंगी (homosexual) थी मर्दाना कपड़े पसंद करती थी और आत्मविश्वास से भरी थी। और सिगरेट नहीं पीती थी। उसका ब्लड प्रेशर हमेशा जूली से 20 अंक ज़्यादा रहता था। जेरी को जूली के बारे में पता था।

इस उदाहरण में एक ही महिला के तीन अलग व्यक्तित्व—(जूली, जेनी और जेरी) दिखाए गए हैं। हर व्यक्तित्व में कुछ हद तक स्मृतिलोप था। जेनी को जूली और जेरी दोनों के बारे में पता था और जेरी को जूली की जानकारी थी लेकिन जूली को जेरी के बारे में कुछ नहीं पता था। 
ये तीनों व्यक्तित्व न सिर्फ याददाश्त में अलग थे बल्कि उनकी इच्छाएं, सोच, रुचियां, सीखने की क्षमता, ज्ञान, नैतिकता, लैंगिक रुझान, बोलने का तरीका, उम्र, ब्लड प्रेशर, और दिल की धड़कन में भी अंतर था। इस आधार पर यह केस बहुव्यक्तित्व विकृति (DID) का साफ उदाहरण है।

DID के कारण 

DID के केसेज का गभीर रूप से विश्लेषण करने के बाद इसके प्रमुख तीन कारण बतलाये गये हैं जो इस प्रकार हैं-

(1) लैंगिक दुर्व्यवहार 
DID का मुख्य कारण बचपन में हुआ दुर्व्यवहार खासकर यौन दुर्व्यवहार माना जाता है। आमतौर पर 4 से 6 साल की उम्र में जब कोई बच्चा विशेष रूप से लड़की इस तरह के दुर्व्यवहार का शिकार बनती है तो उसे गहरा संवेगात्मक आघात पहुँचता है। यह आघात बाद में DID जैसी मानसिक बीमारी का कारण बन सकता है। इस आघात से बचने के लिए बच्चा एक नया व्यक्तित्व बना लेता है जिसमें उसे सब कुछ नया लगता है और वह अपने पुराने व्यक्तित्व को भूल जाता है।

(2) आत्म सम्मोहन 
DID से पीड़ित लोग आत्म-सम्मोहन (self-hypnosis) की ओर बहुत झुकाव रखते हैं। आत्म-सम्मोहन का मतलब है कि व्यक्ति अपनी इच्छा से खुद को एक ऐसी शांत और गहरी अवस्था में ले जाता है जो औपचारिक सम्मोहन जैसी होती है। इस खासियत के कारण खासकर लड़कियाँ अपने व्यक्तित्व को आसानी से कई अलग-अलग पहचानों में बाँट लेती हैं।

(3) जब कोई व्यक्ति अपनी सावेगिंक समस्याओं से निपटने के लिए आत्म-सम्मोहन के जरिए नया व्यक्तित्व बनाने में सफल हो जाता है तो भविष्य में भी किसी समस्या के आने पर वह फिर से एक नया व्यक्तित्व बना लेता है। इस तरह एक ही व्यक्ति में कई अलग-अलग व्यक्तित्व बन जाते हैं जो DID का कारण बनते हैं।

DID के उपचार 

DID का इलाज मनोचिकित्सकों के लिए मुश्किल होता है। आमतौर पर इसके लिए दो तरह की चिकित्सा की जाती है- 
(1) संज्ञानात्मक चिकित्सा
इसमें चिकित्सक मरीज के अपने आप आने वाले विचारों को इकट्ठा करता है। फिर चिकित्सक उसे गलत या तर्कहीन विचारों को पहचानने और उनसे निपटने का तरीका सिखाता है। साथ ही चिकित्सक यह समझने की कोशिश करता है कि मरीज इन विचारों को क्यों महत्व देता है। जरूरत पड़ने पर चिकित्सक सम्मोहन का भी इस्तेमाल करता है। इससे मरीज अपनी बहु व्यक्तित्व की समस्या को समझता है उसकी अर्थहीनता को पहचानता है और धीरे-धीरे उसके लक्षण कम हो जाते हैं।

(2) मनोगतिकी चिकित्सा
इस चिकित्सा में चिकित्सक पहले रोगी को उसकी समस्या के बारे में जागरूक करने की कोशिश करता है। इसके लिए वह सम्मोहन का इस्तेमाल करता है और रोगी को सम्मोहित करके उसे उसके अलग-अलग व्यक्तित्वों से परिचित करवाता है। प्रत्येक व्यक्तित्व को खुलकर बोलने के लिए कहा जाता है और रोगी से यह भी कहा जाता है कि वह इन व्यक्तित्वों को सम्मोहन अवस्था के बाद भी याद रखे। जब रोगी अपने व्यक्तित्वों को समझ लेता है तो चिकित्सक उसे बताता है कि एक शरीर और एक दिमाग में कई व्यक्तित्वों का होना संभव नहीं है। ये अलग-अलग व्यक्तित्व मरीज ने बचपन में आत्म-सम्मोहन से बिना किसी गलत इरादे के अनजाने में बनाए थे। अब वयस्क होने के कारण इनकी जरूरत नहीं है क्योंकि रोगी में इन्हें परास्त करने की ताकत है। इससे मरीज धीरे-धीरे अपने असली व्यक्तित्व को महत्व देने लगता है और DID के लक्षण कम हो जाते हैं।

इसके अलावा विषादविरोधी और चिंताविरोधी औषधों का भी इस्तेमाल किया जाता है जो DID के इलाज में हल्का सकारात्मक प्रभाव दिखाती हैं। 

व्यक्तित्वलोप विकृति

व्यक्तित्वलोप विकृति एक ऐसी मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति खुद को अपने से अलग महसूस करता है। उसे लगता है कि वह मशीन की तरह चल रहा है या सपनों की दुनिया में जी रहा है। उसे ऐसा अनुभव होता है कि वह अपनी मानसिक प्रक्रियाओं एवं शारीरिक प्रक्रियाओं को बाहर से देख रहा है। इस विकृति में व्यक्ति को संवेदी भ्रामक, भावात्मक अनुक्रियाओं की कमी और अपनी ही क्रियाओं पर नियंत्रण खोने का एहसास होता है। 
हालांकि ऐसे लोग यह समझते हैं कि यह सिर्फ एक अनुभव है सच में वह मशीन या ऐसा कुछ नहीं हैं। ऐसे रोगियों में सम्मोहन का प्रभाव आसानी से हो सकता है।
DSM-IV (TR) में इसे एक अलग मनोविच्छेदी विकृति माना गया है लेकिन यह विवादास्पद है। कारण यह है कि इसमें स्मृति की समस्या नहीं होती है जबकि बाकी मनोविच्छेदी विकृतियों में यह मुख्य लक्षण होता है।

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