मनोग्रस्तता बाध्यता विकृति | लक्षण कारण तथा उपचार | Obsessive Compulsive Desorder (OCD)

प्रांरभ में मनोवैज्ञानिकों का मानना था कि मनोग्रस्तता तथा बाध्यता दो स्वतंत्र रोग है परन्तु बाद में स्पष्ट हो गया कि ये एक ही विकृति के दो पहलू हैं।

मनोग्रस्तता

इसमें रोगी बार बार किसी अतार्किक एवं असंगत विचारों को न चाहते हुए भी मन में दोहराते रहता है। व्यक्ति ऐसे विचारों के अर्थहीनता, असंगतता एवं अतार्किक स्वरूप को भलीभांति जानता है और उनसे छुटकारा पाना चाहता है परन्तु वे विचार बार-बार उसके मन में आकर मानसिक अशांति उत्पन्न करते रहते हैं।
मनोग्रस्तता का विचार कहलाने के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे विचार से रोगी को मानसिक तकलीफ तथा उसका समय बर्बाद होना चाहिए तथा उससे व्यक्ति में दिन-प्रतिदिन की जिदंगी के सामान्य कार्यों, व्यवसायिक कार्यों, शैक्षिक कार्यों तथा सामाजिक कार्यों में पर्याप्त बाधा पहुंचना चाहिए।

मनोग्रस्तता में कुछ ऐसे विचार आते हैं जिनका सही-सही उत्तर देना कठिन होता है जैसे दुनिया में भगवान है या नहीं, सत्य क्या है इत्यादि।

बाध्यता

इसमें रोगी अपने इच्छा के विरुद्ध किसी कार्य को करते रहने के लिए बाध्य रहता है। जैसे साफ सुथरे हाथ को बार-बार धोना, ताला ठीक ढंग से लगा रहने पर भी उसे बार-बार झकझोर कर देखना, सड़क पर खड़े होकर आते जाते गाड़ियों का नम्बर नोट करना, किसी चीज को चुराने की बाध्यता (Kleptomania) , आग लगाने की बाध्यता इत्यादि।


मनोग्रस्तता तथा बाध्यता की प्रकृति 

  1. मनोग्रस्तता का संबंध विचार, चिंतन एवं प्रतिमाओं से होता है।
  2. मनोग्रस्तता में आने वाले विचार बेतुके एवं अर्थहीन होते हैं।
  3. इसमें आने वाले विचार का स्वरूप पुनरावर्ती होता है अर्थात रोगी के मन में बार-बार आकर उसकी मानसिक शांति भंग करते हैं।
  4. ऐसे विचार व्यक्ति के नियंत्रण से बाहर होते हैं।
  5. बाध्यता में व्यक्ति न चाहते हुए भी एक ही क्रिया को बार-बार दोहराता है।
  6. बाध्यता में व्यक्ति द्वारा की गई क्रियाएं अवांछित ही नहीं बल्कि अतार्किक एवं असंगत भी होते हैं।

कुछ ऐसी भी परिस्थितियां होती है जिसमें मनोग्रस्तता तथा बाध्यता के बीच स्पष्ट रेखा नही होती है। जैसे कभी-कभी किसी चिंता से बचने के लिए मन ही मन व्यक्ति कुछ जाप बार बार करता है या बार बार कुछ गिनती करने लगता है इस तरह के परिस्थिति को संज्ञानात्मक बाध्यता कहा जाता है।

Example of OCD
"38 वर्ष की एक महिला थी जो एक बच्चे की मां थी उसके मन में एक दिन में हजारो बार यह विचार आता था कि वह और उसका बच्चा जीवाणु या रोगाणु से ग्रसित हो जायेंगे। जब यह विचार उसके मन में आता था तो वह उसे रोक नहीं पाती थी और हजारों बार उसके बारे में सोचती थी। इस तरह के सतत चिंता से परेशान होकर वह घर पर कपड़े धोने का बाधित व्यवहार करना प्रारंभ कर देती है जिसमें दिन भर का ज्यादातर समय इसी में लग जाता था तथा वह अपने बच्चे को ऐसे कमरे में बंद रखती थी जिसके फर्श और दिवाल को वह कई बार रगड़ रगड़कर धोकर साफ कर लेती थी वह संदूषण के डर से घर के सभी दरवाजों और खिड़कियों को हाथ के बजाय पैर से ही खोलती और बंद करती थी। "

उक्त उदाहरण में महिला में पहले मनोग्रस्ति विचार उत्पन्न हुआ जो फिर बाद में बाध्यता में बदल गया।

मनोग्रस्तता के प्रारुप 

मनोग्रस्तता के पांच प्रारुप बतलाये गये हैं 
(1) मनोग्रस्ति शक 
यह तब उत्पन्न होता है जब कोई कार्य ठीक-ठाक ढंग से पूर्ण या संपन्न कर लिया जाता है। 
जैसे कमरा का ताला ठीक से बंद करके आने के बाद भी कुछ रोगियों के मन में यह विचार बार-बार आता है कि उसने ताला ठीक से बंद नहीं किया है। इस तरह का शक करीब 95% रोगियों में पाया गया।

(2) मनोग्रस्ति चिंतन 
इस तरह के चिंतन का संबंध रोगी के जीवन में भविष्य में घटने वाली घटनाओं से सम्बंधित होता है।  
जैसे एक गर्भवती महिला रोगी बार-बार यह चिंतन करके परेशान रहती थी कि लड़का पैदा होने के बाद उसे कहीं दूर नौकरी पर जाना पड़ सकता है परंतु लड़का हमारे पास ही आना चाहेगा और ऐसी परिस्थिति में तब वह क्या करेगी।
साक्षात्कार के लिए गये रोगियों में से 34% रोगियों में इस तरह का चिंतन पाया गया।

(3) मनोग्रस्ति आवेग 
कुछ रोगियों में कुछ साधारण एवं तुच्छ क्रियाओं को करने से सम्बद्ध तीव्र इच्छाएँ बार-बार आते देखी गयी और ऐसे रोगियों की संख्या 17% थी। 
जैसे एक चालीस वर्ष के वकील के मन में अपने इकलौते छोटे बेटे की गला घोंट देने की तीव्र आवेगिक इच्छा बार-बार आती थी।

(4) मनोग्रस्ति डर 
26% रोगियों में यह देखा गया कि वे इस बात से काफी भयभीत एवं डरे हुए रहते थे कि वे अपना नियंत्रण कहीं खोकर कुछ ऐसा कार्य न कर दें, जो सामाजिक रूप से लज्जित करने वाला हो। 
जैसे एक 32 वर्ष के शिक्षक को प्रायः यह डर परेशान करता था कि वह अपने शिक्षक वर्ग में अपने पत्नी के असंतोषजनक लैंगिक व्यवहार के बारे में कुछ कह न दें।

(5) मनोग्रस्ति प्रतिमा 
कुछ रोगियों में हाल में देखे गये दृश्य या कल्पना किये गये दृश्यों से सम्बद्ध घटना की प्रतिमाएँ मन में सतत आतीं थीं। ऐसे रोगियों की संख्या मात्र 7% थीं। 
जैसे एक रोगी के मन में शौचगृह में जाने पर यह प्रतिमा बार-बार आती थी कि उसके नवजात शिशु को पैखाना में कोई बहा दे रहा है।

बाध्यता के प्रारूप 

बाध्यता के दो प्रारूप मुख्य रूप से पाये गये-
(1) अनुवर्ती बाध्यता 
इसमें रोगी कोई क्रिया करने की प्रबल दवाब महसूस करता है। 
जैसे एक कर्मचारी जिसकी आयु 29 वर्ष की थी अपने जेब में बार-बार हाथ डालकर यह देखता था कि उसमें महत्त्वपूर्ण पत्र तो नहीं पड़ा है हालांकि वह जानता था कि यह सही नहीं है। इस तरह की अनुवर्ती बाध्यता करीब 61% रोगियों में पाया गया। 

2. नियंत्रण बाध्यता 
इस तरह के बाध्यता में रोगी अपना ध्यान किसी बाधित व्यवहार को नियंत्रित करने के ख्याल से कुछ आवर्ती व्यवहार करता है। 
जैसे एक 16 साल का लड़का अपने अनुचित लैंगिक इच्छा से उत्पन्न चिंता को नियंत्रित जोर-जोर से बोलते हुए गिनती करके करता था।

OCD के कारण

1. जैविक कारक
यदि किसी व्यक्ति के संबंधियों में चिंता विकृति अधिक होती है तो उस व्यक्ति में OCD उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती है। और कुछ मनश्चिकित्सकों के अनुसार (encephalitis), सिर में चोट तथा मस्तिष्कीय ट्यूमर के कारण भी OCD उत्पन्न होता है।

जैव मेडिकल शोधकर्ताओं के अनुसार OCD एक मस्तिष्कीय रोग है इसके समर्थन में उन्होंने तीन तरह के सबूतों की चर्चा की है -

1. तंत्रकीय चिन्ह 
OCD मस्तिष्किय आघात से विकसित होता है।
जैसे एक आठ साल का बच्चा मैदान में खेल रहा था अचानक वह गिर गया और मस्तिष्किय रक्तस्राव के साथ वह बेहोश हो गया। इसके बाद उसके मस्तिष्क का सफलता पूर्वक सर्जिकल आपरेशन किया गया और बाद में उसमें बाध्यता विकसित हो गया। वह प्रत्येक चीज को सात बार गिनता था, प्रत्येक चीज का सात बार नाम लेता था वह सात बजने पर खाना खाता था।
कुछ अध्ययनों से पता चला है कि OCD का संबंध मिरगी रोग से भी होता है जैसे जब यूरोप में मिरगी रोग का प्रकोप 1916 से 1918 के बीच हुआ था तो उस समय ऐसे रोगियों में OCD के भी लक्षण विकसित हो गये थे।

2. मस्तिष्कीय स्कैन असामान्यता
OCD के रोगियों के मस्तिष्क में कई भाग ऐसे होते हैं जिनमें अतिक्रियाशीलता पायी जाती है। जैसे (Cortical striatal Thalamic) क्षेत्र की सक्रियता OCD के रोगियों में अधिक पाया जाता है। मस्तिष्क के इस क्षेत्र का संबंध असंगत सूचनाओं एवं व्यवहार की अनावश्यक पुनरावृत्ति को कम करना होता है स्वभावत: जब मस्तिष्क का यह क्षेत्र अत्यधिक क्रियाशील हो जाता है तो रोगी में असंगत सूचनाओं के बारे में आवृत्तीय चिंतन करने तथा संबंध व्यवहार की अनावश्यक पुनरावृत्ति अधिक होने लगती है जो OCD का प्रमुख लक्षण है।

3. औषध चिकित्सा से मिले सबूत 
इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि जब कोई रोग किसी विशेष औषध से कम या समाप्त होता है तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि रोग का कारण मस्तिष्कीय है। क्योंकि ये औषध मस्तिष्क में कुछ प्रभाव उत्पन्न करके OCD के लक्षणों में कमी लाते हैं।


2. मनोविश्लेषणात्मक कारक 
अवांछनीय एवं अचेतन के इच्छाओं जो दमित होकर व्यक्ति के अचेतन में होती है चेतन में आने की कोशिश करती है तो इससे व्यक्ति एक सुरक्षात्मक उपायों को ढूंढता है और सुरक्षात्मक उपायों के रूप में वह OCD के लक्षणों को विकसित कर लेता है सुरक्षात्मक उपायों के रूप में व्यक्ति प्रतिस्थापन तथा विस्थापन का उपयोग करता है।

"जैसे एक लड़की का अचेतन खौफनाक चिंता यह था कि उसकी मां तीव्र बुखार से मर सकती है इस तरह का चिंतन जब जब चेतन में आता था तो वह चिंतित हो जाती थी और इस चिंता से बचने के लिए उसने अपने खौफनाक चिंतन का प्रतिस्थापन कुछ अवांछनीय वस्तु जैसे रंग एवं गर्म वस्तुओं के चिंतन से हो गया। अब वह कुछ खास तरह के रंग को बार-बार देखना तथा गर्म पानी से बार बार स्नान करना हाथ धोना आदि उसे अच्छा लगता था लड़की द्वारा प्रतिस्थापित चिंता अपनी स्वेच्छा से न होकर कारण पर आधारित है गर्म एवं रंगीन वस्तु से उसे बुखार का प्रतिबिंबन हो रहा था जिससे उसकी मां मर सकती थी।"

3. व्यवहारपरक सिध्दांत 
इस सिध्दांत के अनुसार OCD को एक सीखा गया विकृति माना गया है जो विशेष तरह के परिणामों से पुनर्बलित होता है एक ऐसा ही परिणाम है डर की कमी।

जैसे जब व्यक्ति गंदगी या जीवाणु से दूषित हो जाने की मनोग्रस्ति चिंतन को कम करने के लिए हाथ साफ करने का बाधित व्यवहार करता है तो व्यक्ति में दूषित हो जाने की चिंता कम होती है अर्थात इस अनुक्रिया से व्यक्ति को पुनर्बलन के रूप में डर में कमी होती है।
जैसे ताला बंद करके उसे बार-बार झकझोर कर यह देखना कि कहीं खुला तो नहीं रह गया यह भी इसका एक उदाहरण है।

संज्ञानात्मक सिध्दांत
संज्ञानात्मक सिध्दांत के अनुसार जब व्यक्ति किसी ऐसी परिस्थिति में होता है जिसमें कुछ अवांछनीय या खतरनाक परिणाम उत्पन्न होने की थोड़ी सम्भावना होती है और जब व्यक्ति इस तरह के परिणाम अतिआकलन करता है तो उसमें OCD के लक्षण विकसित होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

OCD का उपचार

OCD के उपचार के लिए कई तरह के चिकित्सीय प्रविधियों का प्रावधान किया गया है जिसमें निम्नांकित तीन प्रमुख हैं-
  1. मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा 
  2.  व्यवहार चिकित्सा 
  3. औषध सिद्धांत

1. मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा 
 इस तरह की चिकित्सा में रोगी के अचेतन मन में दमित मानसिक संघर्ष की पहचान करने की कोशिश की जाती है। इस चिकित्सीय प्रविधि में रोगी के सुरक्षात्मक प्रतिक्रियाओं (defensive reaction) का विस्तृत विश्लेषण किया जाता है और उसके मानसिक संघर्ष की उत्पत्ति के कारणों में उसकी सूझ विकसित की जाती है। जब रोगी को रोग के कारण की उत्पत्ति में सूझ विकसित हो जाती है तो रोग के लक्षण लगभग समाप्त होते दिखते हैं। OCD के उपचार में मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा अधिक प्रभावकारी सिद्ध नहीं हुआ है क्योंकि इस विधि में रोगी के सुरक्षात्मक प्रतिक्रियाओं के विश्लेषण में वर्षों का समय लग जाता है और उसके बाद भी उसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता है। 

2. व्यवहार चिकित्सा 
व्यवहार चिकित्सा में तीन प्रविधियों (अर्थात् मॉडलिंग फ्लडिंग तथा अनुक्रिया निवारण) का संयोजित रूप से उपयोग OCD के उपचार में किया जाता है। 
इन तीन प्रविधियों का संयुक्त उपयोग बार-बार हाथ धोने के बाधित व्यवहार को दूर करने में अधिक सफलतापूर्वक किया गया है। 
  1. इसमें पहले रोगी यह देखता है कि चिकित्सक अपने आपको गंदगी से किस प्रकार संदूषित कर लेता हैं। यह मॉडलिंग का उदाहरण हुआ। 
  2. इसके बाद चिकित्सक रोगी को अपने पूरे शरीर पर उस गंदगी को फैलाकर खूब रगड़ने के लिए कहता हैं। यह फ्लडिंग का उदाहरण हुआ। 
  3. फिर रोगी बिना गंदगी को धोये कुछ घंटों तक अपने आपको उसी अवस्था में रखे रहता है। यह अनुक्रिया निवारण का उदाहरण हुआ। 
इस तरह से कई बार रोगी अपने पूरे शरीर पर गंदगी को फैलाकर बिना उसे धोये या साफ-सुथरा किये घंटों तक बैठा रहता है। इसका परिणाम यह होता है कि संदूषण का मनोग्रस्ति चिंतन धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है और दिन-प्रतिदिन की जिंदगी में बार-बार हाथ धोने का बाधित व्यवहार भी कम हो जाता है। 

3. औषध चिकित्सा 
OCD के उपचार में कुछ औषधों जैसे (Clomipramine) के सेवन से OCD के लक्षण समाप्त होते हैं। परंतु बहुत से रोगी इस औषध से ठीक नहीं हो पाते हैं जिन रोगियों को कुछ लाभ भी होता है तो वे पूर्णतः स्वस्थ नहीं हो पाते हैं। उनके लक्षण थोड़े समय के लिए दब अवश्य जाते हैं और थोड़े समय के बाद वे पुनः वापस आ जाते हैं।
क्लोमिप्रेमाइन एक विषादविरोधी दवा (antidepressant drug) है जो सेरोटोनिन के पुनर्वापसी (reuptake) को रोकता है। 
बहुत से रोगी इस औषध के सेवन से भी ठीक नहीं हो पाते हैं तथा बहुत से रोगी इस औषध के पार्श्व प्रभाव (side effect) के डर से सेवन नहीं करते हैं। कब्जियत, ऊघना तथा लैंगिक अभिरुचि में कमी इसके प्रमुख पार्श्व प्रभाव हैं।  


निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है OCD के उपचार के कई प्रविधियाँ हैं जिनमें व्यवहार चिकित्सा सबसे अधिक प्रभावी है।

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