आक्रामकता एक ऐसा व्यवहार है जो मनुष्य तथा पशु दोनों में पाया जाता है अतः आक्रामक व्यवहार एक सार्वजनिक घटना (universal phenomenon) है।
(Baron & Byrne, 1987) के अनुसार " आक्रामकता एक ऐसा व्यवहार होता है जिसका लक्ष्य दूसरों को क्षति पहुंचाना या घायल करना होता है तथा जिससे बचने के लिए वह (दूसरा व्यक्ति) प्रेरित होता है।"
(Mayers, 1988) के अनुसार " आक्रामकता एक ऐसा शारीरिक या शाब्दिक व्यवहार होता है जिनका उद्देश्य दूसरों को चोट पहुंचाना होता है।"
(Taylor, peplau & sears, 2006) के अनुसार "कोई भी कार्य जिसका अभिप्राय दूसरों को हानि पहुंचाना होता है, को आक्रामकता कहा जाता है।"
Aggression: Nature
- आक्रामक व्यवहार एक सार्वजनिक घटना है।
- आक्रामकता एक ऐसा व्यवहार होता है जो जान बूझकर दूसरों को या उसकी जायदाद (property) को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से किया जाता है।
- आक्रामक व्यवहार में अभिप्राय प्रकट (explicit) या अप्रकट (implicit) दोनों तरह का हो सकता है।
- आक्रामकता में पीड़ित व्यक्ति आक्रामक व्यवहार से बचने की कोशिश करता है।
आक्रामकता का स्वरूप तीन तरह का होता है
- समाज विरोधी आक्रामकता (antisocial aggression)
- प्रसामाजिक आक्रामकता (prosocial aggression)
- अनुमोदित आक्रामकता (sanctioned aggression)
1. समाज विरोधी आक्रामकता
समाज विरोधी आक्रामकता से तात्पर्य वैसे आक्रामक व्यवहार से होता है जो समाज के नियमों के विरूद्ध होता है। जैसे - किसी को गाली देना, तमाचा मारना आदि।
2. प्रसामाजिक आक्रामकता
कुछ आक्रामक व्यवहार ऐसे होते हैं जो समाज के नियमों के अनुकूल होते हैं जिसे प्रसामाजिक आक्रामकता कहा जाता है। जैसे - माता-पिता का अनुशासनात्मक व्यवहार, युध्द में कमाण्डर के आक्रामक आदेश का सिपाहियों द्वारा पालन करना आदि।
3. अनुमोदित आक्रामकता
समाज विरोधी आक्रामकता और प्रसामाजिक आक्रामकता के बीच के कुछ आक्रामक व्यवहार होते हैं जिसे अनुमोदित आक्रामकता कहा जाता है।
इस तरह की आक्रामकता में वैसे आक्रामक व्यवहार सम्मिलित होते हैं जिसकी जरूरत सामाजिक मानकों के अनुसार तो नहीं होती है परंतु उन्हें उनकी सीमा के भीतर रखा जा सकता है ऐसे व्यवहार स्वीकृत नैतिक मानकों का अतिक्रमण नहीं करते हैं।
जैसे - एक बलात्कारी को महिला द्वारा तमाचा मारना अनुमोदित आक्रामकता का उदाहरण है।
आक्रामकता के स्वरूप को ठीक से समझने के लिए यह भी आवश्यक है कि आक्रामक व्यवहार तथा क्रोध में अन्तर किया जाए। क्रोध एक आक्रामक अनुभूति (aggressive experience) होती है जबकि आक्रामक व्यवहार उस अनुभूति का बाहरी रूपांतरण (external transformation) है।
Theories of aggression
- मूलप्रवृत्तिक सिध्दांत (instinct theory)
- कुण्ठा - आक्रामकता प्राक्कल्पना (frustration-aggression hypothesis)
- सामाजिक सीखना सिध्दांत (social learning theory)
Instinct theory
मूल प्रवृत्ति सिध्दांत के अनुसार मनुष्य तथा पशु में आक्रामकता एक जन्मजात व्यवहार होता है जो मूलप्रवृत्ति के कारण उत्पन्न होता है।मूल प्रवृत्ति से तात्पर्य किसी उद्दीपक के प्रति एक खास तरह की अनुक्रिया करने की एक जन्मजात प्रवृत्ति (inherited tendency) होती है ।
मूल प्रवृत्ति सिध्दांत के अन्तर्गत मूलतः दो व्यक्तियों के सिध्दांतों को रखा गया है -
मूल प्रवृत्ति सिध्दांत के अन्तर्गत मूलतः दो व्यक्तियों के सिध्दांतों को रखा गया है -
1. फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिध्दांत (Freud's psychoanalytical theory)
इस सिध्दांत का प्रतिपादन (Sigmund Freud) द्वारा किया गया था फ्रायड के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में दो तरह की मूल प्रवृत्ति पाये जाते हैं जीवन मूलप्रवृति (life instinct) तथा मृत्यु मूलप्रवृति (death instinct)।
जीवन मूलप्रवृति को इरोस (Eros) कहा जाता है इसमें व्यक्ति को सभी तरह के रचनात्मक कार्य करने का पर्याप्त प्रेरणा देता है।
मृत्यु मूलप्रवृति को थैनेटोस (Thanatos) कहा जाता है जो सभी तरह के विध्वंसात्मक (destructive) तथा आक्रामक कार्य करने की प्रेरणा देता है। जब किसी व्यक्ति में मृत्यु मूलप्रवृति की प्रबलता अधिक होती है तो वह व्यक्ति अधिक आक्रामक होता है।
मृत्यु मूलप्रवृति की अभिव्यक्ति अन्तर्मुखी (inward) तथा बर्हिमुखी (outward) दो तरह की हो सकती है।
सामान्यतः जीवन मूलप्रवृति तथा मृत्यु मूलप्रवृति में संतुलन बना रहता है जिससे व्यक्ति का वातावरण के साथ समायोजन ठीक रहता है।
2. लारेन्ज का आचारशास्त्रीय सिध्दांत (Lorenz's Ethological theory)
इस सिध्दांत का प्रतिपादन प्रसिद्ध आचारशास्त्री एवं नोबेल पुरस्कार विजेता (Konrad Lorenz) द्वारा किया गया।
फ्रायड के समान आक्रामक व्यवहार को लारेन्ज ने विध्वंसात्मक नहीं बतलाया है। बल्कि उन्होंने ऐसे व्यवहार को पशुओं को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए आवश्यक बतलाया।
लारेन्ज का कार्य मूलतः पशुओं के आक्रामक व्यवहार के अध्ययन पर आधारित था फिर भी उन्होंने मानव आक्रामकता की व्याख्या को अपने सिध्दांत में शामिल किया।
उन्होंने मानव आक्रामकता की व्याख्या करने के लिए मूलतः दो प्रश्नों को उजागर किया -
- एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को जान से क्यों मार डालता है।
- मूलप्रत्यात्मक आक्रामक शक्ति का संचयन किस तरह होता है और उसकी अभिव्यक्ति कैसे होती है।
- एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को जान से क्यों मार डालता है।
जिन पशुओं के पास अपने आप को बचाने का पर्याप्त प्रक्रम नहीं होता है वे अपने दुश्मन का आक्रमण होते ही भाग जाते हैं। जैसे - हिरण, पक्षी आदि
प्रारंभ में तो आक्रमण होने पर मनुष्य भी भाग कर अपने आप को बचाते थे क्योंकि इनके पास अपने आप को बचाने के लिए पर्याप्त प्रक्रम (mechanism) नहीं था। लेकिन प्रौद्योगिकी विकास के कारण मनुष्य में विध्वंसात्मक शक्ति (destructive power) में वृद्धि हो गयी। फलतः मनुष्य जाति अपने ही जाति के अन्य सदस्यों को जान से मार देते हैं।
- मूलप्रत्यात्मक आक्रामक शक्ति का संचयन किस तरह होता है और उसकी अभिव्यक्ति कैसे होती है?
परन्तु इस शक्ति के अभिव्यक्ति (expression) को लेकर दोनों के मत अलग-अलग थे।
फ्रायड के अनुसार ऐसी शक्ति की अभिव्यक्ति होने के लिए किसी बाह्य उद्दीपक की जरुरत नहीं होती है।
जबकि लारेन्ज का मत था कि ऐसी शक्ति की अभिव्यक्ति होने के लिए बाह्य उद्दीपक द्वारा उत्तेजित होना आवश्यक है।
जबकि लारेन्ज का मत था कि ऐसी शक्ति की अभिव्यक्ति होने के लिए बाह्य उद्दीपक द्वारा उत्तेजित होना आवश्यक है।
Frustration-aggression hypothesis
इस सिद्धांत का प्रतिपादन (Dollard, Doob , Miller, Mowrer & Sears, 1929) द्वारा येल विश्वविद्यालय में किये गये शोधों के परिणामस्वरूप हुआ।इस सिद्धांत में दो महत्वपूर्ण पद हैं - कुंठा (frustration) और आक्रामकता (aggression)।
Frustration (कुंठा)
किसी वांछित लक्ष्य पर पहुंचने के लिए व्यक्ति द्वारा किया गया व्यवहार जब बीच में ही अवरूद्ध हो जाता है तो इससे उत्पन्न होने वाली मनोदशा को कुंठा कहा जाता है।
Aggression (आक्रामकता)
दूसरों को क्षति पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया शाब्दिक या शारीरिक व्यवहार को (Dollard) ने आक्रामकता की संज्ञा दी है।
इस सिद्धांत में कुंठा एवं आक्रामकता के सम्बन्धो को निम्नांकित दो प्राक्कल्पनाओं (hypothesis) के रूप में (Dollard, 1939) तथा उनके सहयोगियों ने व्यक्त किया है-
इस सिद्धांत के अनुसार कुंठित व्यक्ति (frustrated person) हमेशा किसी न किसी प्रकार का आक्रामक व्यवहार करता है। और सभी तरह के आक्रामक व्यवहार वस्तुतः कुंठा के ही परिणाम होते हैं।
इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति कुंठा उत्पन्न करने वाले स्रोत या एजेंट के प्रति सीधे आक्रामकता दिखलाता है। इसे प्रत्यक्ष आक्रामकता (direct aggression) कहते हैं।
परन्तु कभी-कभी आक्रामकता दिखलाने वाला स्रोत व्यक्ति अपने से अधिक शक्तिशाली पाता है या उससे उसे दण्ड मिलने की संभावना तीव्र होती है। तो वैसी परिस्थिति में व्यक्ति का आक्रामक व्यवहार किसी दूसरे मिलते-जुलते स्रोत या एजेंट के प्रति विस्थापित हो जाता है इसे विस्थापित आक्रामकता (displaced aggression) कहते हैं।
जैसे - सिनेमा जाने की अनुमति पिता द्वारा नहीं मिलने पर युवक अक्सर अपने माता से ही उलझ जाता है इस उलझन में पिता कुंठा के स्रोत हैं परन्तु युवक द्वारा पिता से न उलझकर मां से उलझना अपने आक्रामकता को वास्तविक स्रोत से मिलते-जुलते दूसरे स्रोत अर्थात मां के प्रति दिखलाया जाना विस्थापित आक्रामकता का उदाहरण है।
1. आक्रामक व्यवहार के उत्पत्ति के स्रोत क्या हैं?
इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति या समूह में आक्रामकता उत्पन्न होने के तीन स्रोत बतलाये गये हैं-
i. प्रत्यक्ष निर्देश (direct instruction)
Aggression (आक्रामकता)
दूसरों को क्षति पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया शाब्दिक या शारीरिक व्यवहार को (Dollard) ने आक्रामकता की संज्ञा दी है।
इस सिद्धांत में कुंठा एवं आक्रामकता के सम्बन्धो को निम्नांकित दो प्राक्कल्पनाओं (hypothesis) के रूप में (Dollard, 1939) तथा उनके सहयोगियों ने व्यक्त किया है-
- कुंठा से हमेशा किसी न किसी प्रकार की आक्रामकता उत्पन्न होती है।
- आक्रामकता हमेशा कुंठा से उत्पन्न होती है।
इस सिद्धांत के अनुसार कुंठित व्यक्ति (frustrated person) हमेशा किसी न किसी प्रकार का आक्रामक व्यवहार करता है। और सभी तरह के आक्रामक व्यवहार वस्तुतः कुंठा के ही परिणाम होते हैं।
इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति कुंठा उत्पन्न करने वाले स्रोत या एजेंट के प्रति सीधे आक्रामकता दिखलाता है। इसे प्रत्यक्ष आक्रामकता (direct aggression) कहते हैं।
परन्तु कभी-कभी आक्रामकता दिखलाने वाला स्रोत व्यक्ति अपने से अधिक शक्तिशाली पाता है या उससे उसे दण्ड मिलने की संभावना तीव्र होती है। तो वैसी परिस्थिति में व्यक्ति का आक्रामक व्यवहार किसी दूसरे मिलते-जुलते स्रोत या एजेंट के प्रति विस्थापित हो जाता है इसे विस्थापित आक्रामकता (displaced aggression) कहते हैं।
जैसे - सिनेमा जाने की अनुमति पिता द्वारा नहीं मिलने पर युवक अक्सर अपने माता से ही उलझ जाता है इस उलझन में पिता कुंठा के स्रोत हैं परन्तु युवक द्वारा पिता से न उलझकर मां से उलझना अपने आक्रामकता को वास्तविक स्रोत से मिलते-जुलते दूसरे स्रोत अर्थात मां के प्रति दिखलाया जाना विस्थापित आक्रामकता का उदाहरण है।
Social learning theory
इस सिद्धांत का प्रतिपादन (Bandura, 1973) द्वारा किया गया। बाद में इस सिद्धांत के विकास में (Bandura) के अन्य सहयोगी जैसे (walters, 1975) ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह सिद्धांत आक्रामकता के संबंध में मूलतः तीन तरह के प्रश्नों का उत्तर देता है -- आक्रामक व्यवहार के उत्पत्ति के स्रोत क्या हैं?
- आक्रामक व्यवहार के उत्तेजक क्या हैं?
- आक्रामक व्यवहार कैसे सीखा जाता है?
1. आक्रामक व्यवहार के उत्पत्ति के स्रोत क्या हैं?
इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति या समूह में आक्रामकता उत्पन्न होने के तीन स्रोत बतलाये गये हैं-
i. प्रत्यक्ष निर्देश (direct instruction)
कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जिसमें व्यक्ति को आक्रामक व्यवहार करने के लिए सीधा या प्रत्यक्ष निर्देश दिया जाता है और उसके परिणामस्वरूप वह आक्रामक व्यवहार करता है जैसे - युध्द में सैनिकों को सेनानायक अपने दुश्मन पर आक्रमण करने के निर्देश देते हैं।
ii. प्रयत्न एवं त्रुटि सीखना (trial and error learning)
ii. प्रयत्न एवं त्रुटि सीखना (trial and error learning)
मान लिया जाए किसी एक बच्चे पर दूसरा बच्चा आक्रमण करता है परिस्थिति ऐसी है कि पहला बच्चा भाग नहीं पाता है परिणामस्वरूप वह विवश होकर दूसरे बच्चे पर प्रतिआक्रमण (counter attack) करता है थोड़ी देर के लिए मान लिया जाय कि पहला बच्चा प्रतिआक्रमण में सफल होता है तो इसका परिणाम यह होगा की पहला बच्चा जब-जब भविष्य में इस ढंग के परिस्थिति में घिरेगा तो वह प्रतिआक्रमण व्यवहार करेगा।
iii. प्रेक्षणात्मक सीखना (observation learning)
जब व्यक्ति दूसरों को आक्रमण करते देखता है तो वह भी वैसा करना प्रारंभ कर देता है।
2. आक्रामक व्यवहार के उत्तेजक क्या हैं?
सामाजिक सीखना सिध्दांत आक्रामक व्यवहार के स्रोत के साथ-साथ आक्रामक व्यवहार को उकसाने वाले कारकों की व्याख्या करता है। (Bandura) ने ऐसे चार कारकों का पहचान किया है -
iii. प्रेक्षणात्मक सीखना (observation learning)
जब व्यक्ति दूसरों को आक्रमण करते देखता है तो वह भी वैसा करना प्रारंभ कर देता है।
2. आक्रामक व्यवहार के उत्तेजक क्या हैं?
सामाजिक सीखना सिध्दांत आक्रामक व्यवहार के स्रोत के साथ-साथ आक्रामक व्यवहार को उकसाने वाले कारकों की व्याख्या करता है। (Bandura) ने ऐसे चार कारकों का पहचान किया है -
i. विरूचि विवेचन (aversive treatment)
दुखदायी, कष्टकर तथा कुंठित अनुभवों से व्यक्ति न केवल सांवेगिक रूप से उत्तेजित है। बल्कि उसमें आक्रामकता की भी प्रवृत्ति होती है।
ii. निर्देश (instruction)
ii. निर्देश (instruction)
निर्देश को आक्रामकता को उकसाने वाला एक प्रमुख कारक माना गया है। Milgram ने अध्ययन करके दिखलाया कि प्रयोगकर्ता से निर्देश मिलने पर प्रयोज्य कुछ वयस्कों को निर्दयतापूर्वक उच्च वोल्ट का विद्युताघात करते थे।
iii. प्रेक्षण (observation)
जब व्यक्ति दूसरों द्वारा किये जा रहे आक्रामक व्यवहार का प्रेक्षण करता है तो उसमें वैसा ही व्यवहार करने की प्रेरणा उत्पन्न हो जाती है।
iv. प्रोत्साहन या पुरस्कार मिलने की आशा (anticipation of incentive or reward)
जब व्यक्ति को यह महसूस होता है कि उसे आक्रामक व्यवहार करने से कुछ लाभ हो सकता है। तो वह यही निर्णय लेता है कि वांछित लक्ष्य पर पहुंचने का उत्तम रास्ता आक्रामकता दिखलाना ही है।
3. आक्रामक व्यवहार कैसे सीखा जाता है?
(Bandura ,1963) का मत है कि आक्रामक व्यवहार को व्यक्ति बाह्य पुनर्बलन, आत्म पुनर्बलन तथा स्थापन्न पुनर्बलन के आधार पर सीखता है।
iii. प्रेक्षण (observation)
जब व्यक्ति दूसरों द्वारा किये जा रहे आक्रामक व्यवहार का प्रेक्षण करता है तो उसमें वैसा ही व्यवहार करने की प्रेरणा उत्पन्न हो जाती है।
iv. प्रोत्साहन या पुरस्कार मिलने की आशा (anticipation of incentive or reward)
जब व्यक्ति को यह महसूस होता है कि उसे आक्रामक व्यवहार करने से कुछ लाभ हो सकता है। तो वह यही निर्णय लेता है कि वांछित लक्ष्य पर पहुंचने का उत्तम रास्ता आक्रामकता दिखलाना ही है।
3. आक्रामक व्यवहार कैसे सीखा जाता है?
(Bandura ,1963) का मत है कि आक्रामक व्यवहार को व्यक्ति बाह्य पुनर्बलन, आत्म पुनर्बलन तथा स्थापन्न पुनर्बलन के आधार पर सीखता है।
जब व्यक्ति को आक्रामक व्यवहार करने के बाद बाह्य पुनर्बलन (external reinforcement) मिलता है तो वह वैसा व्यवहार भविष्य में अधिक करते पाया जाता है।
बाह्य पुनर्बलन में ठोस पुरस्कार, सामाजिक अनुमोदन, सामाजिक प्रशंसा, सामाजिक स्तर, कष्टकर अनुभूतियों से मुक्ति, पीड़ित को क्षति पहुंचाना आदि सम्मिलित होते हैं।
आत्म पुनर्बलन (self reinforcement) व्यक्ति में तब उत्पन्न होता है जब वह यह समझता है कि कुछ कष्ट होने के बावजूद भी उन्होंने लक्षित व्यक्ति या वस्तु से अपने आप को उचित आक्रामक व्यवहार करके बचा लिया है।
स्थापन्न पुनर्बलन (vicarious reinforcement) से तात्पर्य आक्रामक व्यवहार दिखलाने वाले व्यक्ति में आक्रामकता से उत्पन्न परिणाम के साथ मनोवैज्ञानिक हिस्सेदारी से होता है।
जैसे - कोई व्यक्ति उस समय गर्व महसूस करता है जब खेल के मैदान में वह टीम जिसमें वह खेल रहा है, विरोधी टीम को परास्त कर देता है।
उसमें उस समय शर्म या दोष उत्पन्न होता है जब वह यह पाता है कि उसकी टीम विरोधी टीम द्वारा परास्त हो चुकी है।
FAQ
आक्रामकता की परिभाषा क्या है?
आक्रामकता एक ऐसा शारीरिक या शाब्दिक व्यवहार होता है जिनका उद्देश्य दूसरों को चोट पहुंचाना होता है।
आक्रामकता की सबसे अच्छी परिभाषा कौन सी है।
कोई भी कार्य जिसका अभिप्राय दूसरों को हानि पहुंचाना होता है, को आक्रामकता कहा जाता है।
कुंठा (frustration) क्या है?
किसी वांछित लक्ष्य पर पहुंचने के लिए व्यक्ति द्वारा किया गया व्यवहार जब बीच में ही अवरूद्ध हो जाता है तो इससे उत्पन्न होने वाली मनोदशा को कुंठा कहा जाता है।
समाज विरोधी आक्रामकता से आप क्या समझते हैं?
समाज विरोधी आक्रामकता से तात्पर्य वैसे आक्रामक व्यवहार से होता है जो समाज के नियमों के विरूद्ध होता है। जैसे - किसी को गाली देना, तमाचा मारना आदि।
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